बिहार चुनाव के बीच महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है. ये बात इसलिए कही जा रही है, क्योंकि इसके पीछे की कई सारी वजहें सबके सामने हैं. पहली बड़ी वजह सीट शेयरिंग को लेकर कोई भी फॉर्मूला महागठबंधन में फिट नहीं बैठ पाया है. जिसकी वजह से महागठबंधन कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट के साथ चुनाव लड़ रहा है.

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यानी एक ही सीट पर महागठबंधन के कई दलों ने अपने-अपने प्रत्याशियों को एक दूसरे के सामने चुनावी मैदान में उतार दिया है. दूसरी वजह चुनाव बेहद नजदीक आ गया है, लेकिन अभी तक CM चेहरे की घोषणा महागठबंधन नहीं कर पाया. माना जा रहा है कि ये भी एक बड़ी वजह है जिसके कारण RJD अपने सहयोगी दलों कांग्रेस और बाकी पार्टी से नाराज चल रही है. 

अशोक गहलोत ने लालू प्रसाद यादव से की मुलाकात 

महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है. ये इस बात से भी साफ हो जाता है कि, कांग्रेस ने अशोक गहलोत को लालू यादव और तेजस्वी से बातचीत के लिए आज बिहार भेजा. दोनों पार्टियों के बीच चल रही रार को खत्म करने की कोशिश की.  इसके साथ ही कई घटनाक्रम ऐसे भी हैं, जिसकी वजह से ये भी साफ झलकता है, कि एक दूसरे से बढ़ रही नाराजगी की वजह से अभी तक कांग्रेस और महागठबंधन के बाकी दलों के मुकाबले प्रचार-प्रसार में भी पिछड़ते हुए नजर आ रहे है. 

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क्यों पिछड़ रहा महागठबंधन, सिलसिलेवार तरीके से समझे

एक सितंबर को पटना में समाप्त हुई राहुल-तेजस्वी की वोटर अधिकार यात्रा के बाद से गठबन्धन का कोई सामूहिक प्रचार नहीं. खुद राहुल ने भी बिहार प्रचार से बनाई दूरी. कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने पहले चुनावी रैलियां शुरु की थीं, अब वो भी ठण्डे बस्ते में है.

  • महिलाओं को अपने पाले में करने का जिम्मा प्रियंका गांधी ने उठाया था, लेकिन 24 सितंबर को पश्चिमी चंपारण में रैली के बाद उन्होंने भी बिहार चुनाव प्रचार से बनाई दूरी.
  • बिहार के हर प्रमंडल में एक रैली का कार्यक्रम बन रहा था, जहां महागठबंधन के नेताओं को शामिल होना था, वो भी अधर में है.
  • महागठबंधन के संयुक्त घोषणापत्र की घोषणा की गई थी, उस पर काम भी चल रहा था, वो भी फिलहाल अटका हुआ है.
  • बिहार कांग्रेस के 6 नेताओं ने अपने पुत्र-पुत्रियों के लिए टिकट मांगा था, वो मिला नहीं. इसलिए अंदरखाने वो भी नाखुश हैं, प्रचार अभियान में उनकी भी रुचि नहीं है.
  • राहुल के साथ यात्रा के बाद तेजस्वी ने अकेले प्रचार यात्रा शुरु की थी. 20 सितंबर को वो खत्म हुई, तब से वे भी प्रचार से दूर हैं.
  • पड़ोसी झारखंड से सटी सीटों पर वहां के सीएम हेमंत सोरेन के साथ महागठबंधन की बड़े प्रचार अभियान की तैयारी थी, लेकिन सीट बंटवारे के बाद अब वो भी एक बड़े झटके में बदल चुका है.
  • इसी तरह यूपी से सटी सीटों पर अखिलेश यादव और बंगाल से सटी सीटों पर ममता बनर्जी के साथ महागठबंधन के प्रचार का अभियान भी अभी तक अधर में ही है.

कुल मिलाकर चुनाव में हार-जीत तो बाद में होगी, लेकिन एनडीए के मुकाबले सीट बंटवारा हो या चुनाव प्रचार अभियान, महागठबंधन मोमेंटम की लड़ाई में पिछड़ा हुआ दिख रहा है. साथ ही वोटर अधिकार यात्रा के दौरान जो ऊर्जा और आपसी समन्वय महागठबंधन के नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच दिखा था, उनके दिलों में उपजी गांठ को मिटाना भी खासा मुश्किल होगा. हलांकि इस पर जप कांग्रेस नेताओं से सवाल पूछा जाता है तो जवाब मिलता है कि अंदरखाने सब ठीक है और जल्द ही प्रचार भी जमीन पर दिखना शुरू होगा.