बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल गर्म है और पहले चरण के मतदान में अब कुछ ही दिन बाकी हैं. इसी चरण में पटना जिले की चर्चित सीट मोकामा पर सबकी नजरें टिकी हैं. यह वही सीट है जहां लंबे समय से बाहुबली अनंत सिंह, जिन्हें ‘छोटे सरकार’ कहा जाता है, का दबदबा रहा है. लेकिन इस बार का मुकाबला दिलचस्प है क्योंकि मैदान में उनकी टक्कर सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी से होने वाली है. चुनाव 6 नवंबर को होगा और मोकामा की यह जंग फिर से बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकती है.

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मोकामा की राजनीतिक अहमियत

मोकामा विधानसभा सीट बिहार की राजनीति का वह चेहरा है जहां बाहुबली और जातीय समीकरण मिलकर सत्ता का संतुलन तय करते हैं. यहां से पहले 2020 में अनंत सिंह राजद (RJD) के टिकट पर जीते थे, जबकि 2015 में वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजयी रहे थे. 2010 में यह सीट जदयू (JDU) के पास थी. जातीय समीकरण के नजरिए से देखा जाए तो इस बार फिर मुकाबला भूमिहार बनाम भूमिहार है, क्योंकि अनंत सिंह JDU से मैदान में हैं और वीणा देवी RJD की उम्मीदवार हैं. चुनाव भले वीणा देवी लड़ रही हों, लेकिन राजनीतिक रूप से यह टक्कर अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह मानी जा रही है.

बाहुबलियों की धरती मोकामा

गंगा किनारे बसा मोकामा बाहुबलियों की राजनीति का प्रतीक माना जाता है. यहां 1990 के दशक से ही ताकतवर नेताओं का दबदबा रहा है. तीन दशकों में तीन बड़े बाहुबली- दिलीप सिंह, सूरजभान सिंह और अनंत सिंह ने इस क्षेत्र से जीत दर्ज की है. दिलीप सिंह (1990–2000) जनता दल से, सूरजभान सिंह (2000–2005) निर्दलीय और अनंत सिंह (2005–2022) लगातार विजयी रहे. 2022 के उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने RJD के टिकट पर जीत दर्ज की थी. दिलचस्प यह है कि मोकामा की राजनीति हमेशा किसी न किसी बाहुबली परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है.

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2000 का ऐतिहासिक चुनाव

साल 2000 में मोकामा का चुनाव बिहार की राजनीति में टर्निंग पॉइंट साबित हुआ था. उस वक्त दिलीप सिंह (अनंत सिंह के भाई) मंत्री थे और RJD से चुनाव लड़ रहे थे. तभी सूरजभान सिंह ने निर्दलीय उतरकर उन्हें हराकर सबको चौंका दिया. उस समय सूरजभान सिंह पर 50 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे. यही से मोकामा की राजनीति में बाहुबली बनाम बाहुबली की परंपरा शुरू हुई जो आज तक जारी है.

अनंत सिंह की राजनीतिक यात्रा

‘छोटे सरकार’ कहे जाने वाले अनंत सिंह की राजनीति 2005 में जदयू से शुरू हुई थी. उन्होंने 2005 और 2010 में जीत दर्ज की, फिर 2015 में निर्दलीय और 2020 में राजद के टिकट पर विधायक बने. हालांकि 2022 में हथियार बरामदगी मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी विधायकी चली गई. बाद में 2024 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. इसके बाद वे दोबारा जनवरी 2025 में 6 महीने के लिए जेल गए थे. इस साल की अगस्त में उन्हें फिर रिहा किया गया. अब वे JDU के टिकट से दोबारा मैदान में हैं. अनंत सिंह के खिलाफ 38 आपराधिक मामले दर्ज रहे हैं, जिनमें हत्या, अपहरण और हत्या के प्रयास के आरोप शामिल हैं. इसके बावजूद मोकामा की जनता उन्हें ‘छोटे सरकार’ के रूप में आज भी पहचानती है.

सूरजभान सिंह और वीणा देवी की वापसी

सूरजभान सिंह का नाम भी बिहार के बाहुबली नेताओं में शुमार है. 5 मार्च 1965 को मोकामा में जन्मे सूरजभान ने अपराध से राजनीति की ओर कदम बढ़ाया. 2000 में वे निर्दलीय विधायक बने और 2004 में LJP के टिकट पर सांसद. बाद में बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में सजा हुई, हालांकि 2014 में वे बरी हो गए. चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध के चलते उन्होंने अपनी पत्नी वीणा देवी को राजनीति में आगे बढ़ाया. वीणा देवी 2014 में मुंगेर से सांसद रह चुकी हैं और अब मोकामा से RJD की प्रत्याशी हैं.

क्यों खास है मोकामा की जंग?

मोकामा का मुकाबला सिर्फ दो उम्मीदवारों का नहीं बल्कि दो युगों की टक्कर है. एक तरफ हैं अनंत सिंह, जिनकी छवि जनता के बीच एक स्थानीय ‘सरकार’ जैसी है, वहीं दूसरी ओर सूरजभान सिंह का परिवार राजनीतिक प्रभाव के दम पर मैदान में है. चाहे कोई भी पार्टी जीते, लेकिन तय है कि इस बार भी मोकामा में जीत किसी बाहुबली की ही होगी. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह चुनाव मोकामा के इतिहास को एक बार फिर दोहराने वाला है- जहां बाहुबल, जनसंपर्क और जातीय समीकरण तीनों एक साथ अपनी भूमिका निभाएंगे.

दुष्यंत शेखर की रिपोर्ट