इस सवाल का जवाब बिल्कुल सीधा है- इसमें कोई हर्ज नहीं है. यानी अगर टीम इंडिया वेस्टइंडीज के खिलाफ तीन टी-20 मैचों की सीरीज में पारी की शुरूआत ऋषभ पंत से कराए तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. इस पहलू पर विचार करके देखना चाहिए. ये ऋषभ पंत के लिए शायद करियर बदलने वाला फैसला हो सकता है. ऋषभ पंत पिछले दिनों में खासे परेशान रहे हैं. टेस्ट टीम से उन्हें बाहर किया जा चुका है. उनकी जगह ऋद्धिमान साहा ने ली और साहा ने अपनी उपयोगिता साबित की. अब लिमिटेड ओवर में भी सेलेक्टर्स संजू सैमसन को लेकर आए हैं. यानी ऋषभ पंत पर खतरा इधर भी मंडरा रहा है. 22 साल के ऋषभ पंत की काबिलियत को लेकर किसी को शक नहीं है लेकिन परेशानी इस बात की है कि वो अभी तक बहुत ही गिने चुने मौकों को छोड़कर अपनी काबिलियत साबित नहीं कर पाए हैं. बड़ा मुद्दा ये भी है कि क्रिकेट फैंस को या खिलाड़ियों की जवाबदेही तय करने वालों को परेशानी उनके आउट ऑफ फॉर्म होने से नहीं बल्कि उनके ‘केयरलेस एटीट्यूड’ से है. क्योंकि वो एक ही तरह की गलती कई बार करते हैं. खैर, यही वो वजह है जिससे इस ‘थ्योरी’ पर काम करना चाहिए कि ऋषभ पंत को इस सीरीज में सलामी बल्लेबाजी की जिम्मेदारी दी जाए.


टीम इंडिया के लिए है फायदे का फैसला


शिखर धवन चोट की वजह से इस सीरीज में टीम का हिस्सा नहीं हैं. इधर बीच काफी समय से वो अपने रंग में भी नहीं दिखे हैं. वो रन तो बना रहे हैं लेकिन बड़ी पारियों से लगातार चूके हैं. टी-20 में एक अदद हाफ सेंचुरी लगाए उन्हें करीब एक साल का वक्त बीत चुका है. ऐसे में अगर रोहित शर्मा के साथ ऋषभ पंत को ओपनिंग के लिए भेजा जाता है तो दाएं और बाएं हाथ के बल्लेबाज का ‘कॉम्बिनेशन’ कायम रहेगा. इसके अलावा ऋषभ पंत की स्ट्राइक रेट ऐसी है जो शुरूआती ओवरों में ‘फील्ड रिस्ट्रिक्शन’ के लिहाज से खेल को बदल सकती है. ऋषभ पंत शॉट्स ‘इनोवेट’ भी करते हैं. वैसे भी टी-20 क्रिकेट का नियम कहता है कि टीम के जिन बल्लेबाजों का स्ट्राइक रेट सबसे बेहतरीन हो उसे कुल 120 गेंदों यानी 20 ओवरों में ज्यादा से ज्यादा खेलना चाहिए. ऋषभ पंत का आईपीएल में स्ट्राइक रेट 162 से ज्यादा का है. 2019 में 162, 2018 में 173 और 2017 में 165 से ज्यादा की स्ट्राइक रेट से उन्होंने रन बनाए हैं. इसी प्रदर्शन के दम पर उन्हें टीम इंडिया में जगह भी मिली थी। जिसे बचाए रखने की चुनौती लगातार उनके सर पर मंडरा रही है.


ऋषभ पंत के लिए संजीवनी

ऋषभ पंत की बल्लेबाजी को देखकर समझ आता है कि वो इन दिनों भ्रम की स्थिति में हैं. किसी भी गेंद को रोकने या मारने का फैसला करना उनके लिए मुश्किल हो रहा है. हाल ही मुश्ताक अली ट्रॉफी में ऐसा लग रहा था जैसे उनका बल्ला चल ही नहीं रहा है. हरियाणा के खिलाफ मैच में उन्होंने 32 गेंद पर 28 रन बनाए. राजस्थान के खिलाफ मैच में भी वो 30 रन ही बना पाए. ऋषभ पंत को बतौर ओपनर आजमाए जाने के संकेत भी इसी टूर्नामेंट से मिले. इन दोनों मैचों में उन्होंने दिल्ली के सलामी बल्लेबाज की भूमिका को निभाया. अब अगर उन्हें यही रोल वेस्टइंडीज के खिलाफ दिया जाए तो स्थितियां बदल सकती हैं. लेकिन इन स्थितियों को बदलने के लिए कप्तान और टीम मैनेजमेंट को ऋषभ पंत को वो भरोसा भी देना होगा कि वो क्रीज पर जाकर अपना स्वाभाविक खेल दिखा पाएं. अपनी उस आक्रामकता को दिखा पाएं जिसके लिए उन्हें टीम में जगह दी गई थी. अगर उनका बल्ला चलता है तो उनकी जगह टीम में है ही. अगर नहीं भी चलता है तो सीनियर खिलाड़ियों और मैनेजमेंट को उन्हें समझाना होगा कि उन्हें कुछ दिनों का ब्रेक लेना चाहिए. आखिरकार, 22 साल के ऋषभ पंत जिनके पास अभी कम से कम एक दशक के ज्यादा का करियर बचा है उन्हें तनाव और भ्रम की स्थिति से बाहर निकालना भी जरूरी है.