आपको भी चलानी है तेजस जैसी प्राइवेट ट्रेन तो कितना पैसा होना जरूरी? जान लें पूरा प्रोसेस
तेजस ट्रेन रेलवे में प्राइवटाइजेशन का सबसे बड़ा और चर्चित उदाहरण मानी जाती है. तेजस जैसी प्राइवेट ट्रेन चलाना सिर्फ आइडिया का खेल नहीं है. इसके पीछे बड़ा निवेश, लंबी प्लानिंग और प्रोफेशनल ऑपरेशन जुड़ा होता है. रेलवे यह मौका पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत देता है.
जहां इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार का होता है और सेवाओं की जिम्मेदारी निजी कंपनी निभाती है. प्राइवेट ट्रेन शुरू करने के लिए रेलवे द्वारा जारी टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा लेना जरूरी होता है. इस दौरान कंपनी की फाइनेंशियल स्ट्रेंथ, तकनीकी क्षमता और पहले का अनुभव देखा जाता है.
रेलवे यह सुनिश्चित करता है कि ऑपरेटर यात्रियों को सुरक्षित, समय पर और बेहतर सुविधा दे सके. पैसों की बात करें तो तेजस जैसी ट्रेन चलाने के लिए भारी भरकम पूंजी चाहिए. ट्रेन कोच खरीदने या लीज पर लेने, मेंटेनेंस, स्टाफ, टेक्नोलॉजी और ब्रांडिंग पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च होते हैं.
एक रूट के लिए निवेश का आंकड़ा 700 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. निजी ऑपरेटर को रेलवे को कई तरह के चार्ज भी चुकाने होते हैं. इसमें ट्रैक यूज फीस, स्टेशन चार्ज, बिजली खर्च और मेंटेनेंस से जुड़े भुगतान शामिल हैं. इसके साथ ही समय पालन, सुरक्षा नियम और यात्रियों की सुविधा पर लगातार नजर रखनी होती है.
किराया तय करने में कुछ हद तक आजादी मिलती है. लेकिन मनमानी नहीं चल सकती. बेहतर सीट, साफ कोच, तेज रफ्तार और ऑनबोर्ड सर्विस जैसी सुविधाएं देकर ही यात्री को ज्यादा किराया देने के लिए तैयार किया जाता है. यही वजह है कि तेजस ट्रेन को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है.
कुल मिलाकर तेजस जैसी प्राइवेट ट्रेन चलाना बड़े बिजनेस प्लान का हिस्सा है. इसमें लंबे टाइम का इन्वेस्टमेंट, रिस्क उठाने की कैपेबिलिटी और रेलवे सिस्टम की समझ जरूरी होती है. सही प्लानिंग और अच्छी पूंजी के साथ ही इस सेक्टर में टिके रहना मुमकिन हो पाता है.