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मोबाइल फोन पर अधिक समय बिताने से हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर का खतरा

एबीपी न्यूज़   |  04 Aug 2018 08:46 PM (IST)
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डॉ. अग्रवाल ने कुछ सुझाव देते हुए कहा, इलेक्ट्रॉनिक कर्फ्यू का मतलब है सोने से 30 मिनट पहले किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का उपयोग नहीं करना. पूरे दिन के लिए हफ्ते में एक बार सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बचें. मोबाइल फोन का उपयोग केवल कॉलिंग के लिए करें. दिन में तीन घंटे से अधिक समय तक कंप्यूटर का उपयोग न करें. अपने मोबाइल को दिन में दो घंटे से ज्यादा तक इस्तेमाल न करें. दिन में एक से अधिक बार अपनी मोबाइल बैटरी रिचार्ज न करें. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)

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डॉ. अग्रवाल ने कहा, “इस डिजिटल युग में, अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है पूर्ण संयम, यानी तकनीक का हल्का फुल्का उपयोग होना चाहिए. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)

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एडीएचडी के कुछ सबसे आम लक्षणों में ध्यान न दे पाना (आसानी से विचलित होना, व्यवस्थित होने में कठिनाई होना या चीजों को याद रखने में कठिनाई होना), अति सक्रियता (शांत होकर बैठने में कठिनाई) और अचानक से कुछ कर बैठना शामिल हैं (संभावित परिणामों को सोचे बिना निर्णय लेना). (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)

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उन्होंने आगे कहा, मोबाइल फोन के उपयोग से संबंधित बीमारियों का एक नया स्पेक्ट्रम भी चिकित्सा पेशे के नोटिस में आया है और यह अनुमान लगाया गया है कि अब से 10 साल में यह समस्या महामारी का रूप ले लेगी. इनमें से कुछ बीमारियां ब्लैकबेरी थम्ब, सेलफोन एल्बो, नोमोफोबिया और रिंगजाइटी नाम से जानी जाती हैं. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)

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हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, स्मार्टफोन की बढ़ती लोकप्रियता के साथ युवाओं में फेसबुक, ट्विटर और ऐसे अन्य एप्लीकेशंस में से एक न एक का आदि होने की प्रवृत्ति आम है. इससे नींद टूटने जैसी समस्याएं हो सकती हैं. लोग सोने से पहले स्मार्ट फोन के साथ बिस्तर में 30 से 60 मिनट बिताते हैं. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)

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किशोरों और बच्चों के अधिक समय तक फोन पर लगे रहने से उनके दिमाग पर बुरा असर पड़ सकता है. उनमें अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं. जामा नामक पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक रिसर्च में इस बात का खुलासा भी हुआ है. रिसर्च के मुताबिक, अक्सर डिजिटल मीडिया उपयोग करने वालों में एडीएचडी के लक्षण लगभग 10 फीसद से अधिक होता है. वहीं लड़कियों के मुकाबले लड़कों में यह जोखिम अधिक होता है और उन किशोरों में यह अधिक पाया जाता है, जिन्हें पहले कभी डिप्रेशन रह चुका है. एडीएचडी के कारण स्कूल में खराब परफॉर्मेंस सहित किशोरों पर कई दूसरें नकारात्मक प्रभाव देखने को मिले हैं. इससे जोखिम भरी गतिविधियों में दिलचस्पी, नशाखोरी और कानूनी समस्याओं में वृद्धि हो सकती है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)

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