इस नए ‘ड्रोन एयरफोर्स’ ने उड़ा दी पाकिस्तान की नींद! ये बेस बना टेस्टिंग ग्राउंड, जानें कितनी है ताकत
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये ड्रोन इस्लामाबाद, रावलपिंडी, पेशावर और क्वेटा तक हमले करने की क्षमता रखते हैं. खास बात यह है कि पाकिस्तान ने इस ओर की सीमा पर बहुत कम एयर डिफेंस तैनात किए हैं जिससे तालिबान के ड्रोन को घुसपैठ करने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी.
ब्रिटिश अख़बार डेली मेल के अनुसार, तालिबान ने अफगानिस्तान के लोगार प्रांत में स्थित एक पूर्व ब्रिटिश स्पेशल फोर्स बेस को अपने ड्रोन परीक्षण का मुख्य केंद्र बना लिया है. यह वही एयरबेस है जहां दो दशकों तक ब्रिटिश SAS फोर्स तैनात रही थी. अब यही जगह तालिबान की नई ‘घातक ड्रोन फौज’ का हब बन चुकी है.
रिपोर्ट बताती है कि तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को भी अपने इस प्रोजेक्ट में शामिल किया है. इनमें से एक इंजीनियर ऐसा भी है जिस पर अल-कायदा से संबंध होने का शक है जबकि एक अन्य ने यूके से पढ़ाई की है. तालिबान अब इनकी मदद से सौ से ज़्यादा सुसाइड ड्रोन तैयार कर चुका है.
काबुल के पास स्थित एक पुराना अमेरिकी बेस ‘कैंप फीनिक्स’ अब तालिबान के ड्रोन निर्माण का गुप्त ठिकाना बन चुका है. यह बेस पहले अमेरिकी सेना द्वारा रसद और ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल होता था. अब यहीं पर आत्मघाती ड्रोन बनाए जा रहे हैं. 2021 में अमेरिका के अचानक निकासी के बाद तालिबान ने यहां छोड़े गए सैन्य उपकरणों का अध्ययन कर इन्हें हथियारों में बदलना शुरू कर दिया था.
खुफिया सूत्रों के अनुसार, लोगार स्थित पूर्व SAS बेस से तालिबान ने कई कामिकेज़ ड्रोन की सफल उड़ानें भी कर ली हैं. इनमें से कुछ ड्रोन पाकिस्तान की सीमा के पास हाल ही में हुए हमलों में इस्तेमाल भी किए गए हैं. ये ड्रोन लक्ष्य से टकराते ही धमाके से फट जाते हैं.
तालिबान अब MQ-9 Reaper (अमेरिकी ड्रोन) और ईरानी Shahed-136 जैसे आधुनिक ड्रोन मॉडल की नकल कर रहा है. ईरान ने यही शाहिद ड्रोन रूस को दिए थे जो यूक्रेन में उपयोग हुए और हाल ही में इज़रायल पर हुए हमलों में भी देखे गए. तालिबान के इंजीनियर अब इन ड्रोन की रेंज और विस्फोटक क्षमता को और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.