आपके फोन में आया वीडियो असली है या AI से बनाया गया? इन 6 तरीकों से मिनटों में कर सकते हैं पता
AI से बने नकली वीडियो यानी डीपफेक वीडियो में अक्सर चेहरे के हावभाव थोड़े अजीब नजर आते हैं. कई बार लिप मूवमेंट आवाज से मेल नहीं खाते. इसके अलावा आंखों की पुतलियों की मूवमेंट भी असामान्य होती है. असली वीडियो में जहां हर चीज़ नैचुरल लगती है वहीं नकली वीडियो में चेहरे की लाइटिंग और शैडो मैच नहीं करते.
एक और तरीका है वीडियो फ्रेम को रोककर जांचना. किसी वीडियो को पॉज करके अगर आप चेहरे, बालों या बैकग्राउंड को ध्यान से देखें तो कई बार फ्रेम में धुंधलापन या ‘ग्लिच दिखाई देगा. ये इस बात का इशारा है कि वीडियो AI से बनाया गया है.
ऑडियो पर भी ध्यान दें. डीपफेक वीडियो में आवाज या टोन कई बार मशीन जैसी लगती है और बैकग्राउंड नॉइज़ नैचुरल नहीं होती. असली वीडियो में आवाज में भावनाएं और नैचुरल उतार-चढ़ाव होते हैं जबकि AI-जनरेटेड क्लिप्स में यह कमी दिखती है.
अगर आप किसी वायरल वीडियो की सच्चाई जानना चाहते हैं तो Google Lens या InVID जैसे टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये टूल्स वीडियो के फ्रेम या स्क्रीनशॉट से उसके सोर्स का पता लगाने में मदद करते हैं. इसके अलावा अब कई AI-डिटेक्शन वेबसाइट्स भी हैं जो डीपफेक कंटेंट को पहचानने में सक्षम हैं.
आने वाले समय में डीपफेक वीडियो का चलन और बढ़ने वाला है इसलिए जरूरी है कि हम इन संकेतों को समझें. किसी भी वीडियो पर यकीन करने से पहले उसकी सच्चाई जरूर परखें, क्योंकि आज के दौर में जो दिखता है, वो हमेशा सच नहीं होता.