मिलेनियल्स पर काम का प्रेशर ज्यादा या Gen Z पर, दबाव हैंडल करने में कौन ज्यादा बेहतर?
मिलेनियल्स को शुरू से यह सिखाया गया कि पहले बिना सवाल किए काम करो, नाम बनाओ, तभी बोलने का हक मिलेगा. इसलिए वे आज भी सोचते हैं कि एक्स्ट्रा काम मना करना या समय पर लॉग-ऑफ करना कहीं उन्हें “कम सीरियस” न दिखा दे. Gen Z को यह बोझ नहीं ढोना पड़ता. वे सीधे पूछते हैं कि क्या करना है और कहां रुकना है.
मिलेनियल्स ने देखा है कि प्रमोशन अक्सर उसी को मिलता है, जो हर वक्त उपलब्ध रहता है. इसलिए उन्हें लगता है कि अगर फोन बंद किया, तो अगली अप्रेज़ल में नाम कट सकता है. इसके उलट Gen Z ज्यादा खुलकर पूछती है कि मेहनत का आउटपुट क्या है. उनके लिए घंटों की गिनती से ज्यादा रिज़ल्ट मायने रखता है.
मिलेनियल्स ने एक ऐसा दौर देखा है, जहां मेहनत करने वालों को प्रमोशन और तारीफ मिलती थी. वहीं जो लोग काम टालते थे या जिम्मेदारी दूसरों पर डाल देते थे, उनकऑफिस में अहमियत कम मानी जाती थी.
शोध में सामने आया है कि 10 में से 7 मिलेनियल्स कर्मचारियों को ज्यादा काम और बढ़ते प्रेशर की वजह से बर्नआउट का सामना करना पड़ता है. कई लोगों ने माना है कि काम के बढ़ते बोझ का उनकी सेहत पर भी नकारात्मक असर पड़ा है.
मिलेनियल्स अक्सर टीम को परिवार मान लेते हैं और अपनी सीमा से आगे जाकर काम करते हैं. उन्हें लगता है कि मना करना मतलब टीम को धोखा देना है.
मिलेनियल्स का करियर मोबाइल और व्हाट्सऐप के साथ बड़ा हुआ है. उन्हें लगता रहा कि हर नोटिफिकेशन का तुरंत जवाब देना जरूरी है. Gen Z शुरू से जानती है कि ऑनलाइन रहना जरूरी नहीं है और हर वक्त उपलब्ध रहना भी जरूरी नहीं.
मिलेनियल्स ज्यादा काम इसलिए नहीं करते क्योंकि वे कमजोर हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें सालों तक यही सिखाया गया कि ज्यादा काम का मतलब ज्यादा सुरक्षित भविष्य और ज्यादा इज्जत है.