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दादी-नानी कैसे मनाती थीं करवाचौथ, तस्वीरों में देखिए कितना बदल गया यह त्योहार?

कविता गाडरी   |  07 Oct 2025 02:00 PM (IST)
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दादी-नानी के समय में महिलाएं करवाचौथ के दिन घरों से निकलकर गांव की चौपाल या मोहल्ले के किसी आंगन में एक साथ इकट्ठा होती थी. इसके बाद सभी महिलाएं मिलकर करवाचौथ की कहानी सुनतीं, गीत गाती और एक दूसरे के साथ वक्त बिताती थीं. दादी-नानी के समय में इस दिन महिलाओं के बीच अपनापन का अनोखा माहौल देखने को मिलता था.

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दादी-नानी के समय करवाचौथ से पहले महिलाएं अपनी सास से मिली सरगी की थाली के साथ दिन की शुरुआत करती थीं. थाली में फेनिया, पराठे, मिठाई, फल और सूखे मेवे भी रखे जाते थे. उस समय सरगी सिर्फ एक प्रकार का भोजन नहीं माना जाता था, बल्कि सास का अपनी बहू को दिया गया आशीर्वाद समझा जाता था.

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इसके अलावा हमारी दादी नानी के समय में करवाचौथ पर पार्लर का चलन नहीं था और नहीं महंगे ब्यूटी प्रोडक्ट्स का. इस दिन पहले महिलाएं घर पर ही मेहंदी, बालों में फूल लगाती थी. साथ ही महिलाएं इस दिन पर अपनी शादी का लाल जोड़ा या लाल साड़ी पहनती थी. उस समय हाथों में चूड़ियां, मांग में सिंदूर ही महिलाओं का असली श्रृंगार होता था.

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करवाचौथ की पूजा में भी शाम के समय महिलाएं अपने हाथों से सजाई गई  पूजा की थाल‍ियां लेकर एक साथ बैठी थी. थाली में दिया, रोली, चावल और मिठाईयां रखी जाती थी. वहीं दादी नानी के समय में सबसे बुजुर्ग महिला करवाचौथ की कथा सुनाती थी, जिसमें करवा या सावित्री जैसी कहानी शामिल होती थी.

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दादी-नानी के समय में करवाचौथ का व्रत खोलने के समय जब चांद निकलता था, तो सभी महिलाएं एक साथ आंगन में जमा होती थी. इसके बाद हाथ में छलनी लेकर पहले चांद को और फिर अपने पति के चेहरे को देखती थी. इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर उसका व्रत तोड़ता था. व्रत की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उस समय महिलाएं अपने बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेती थी.

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दादी-नानी के समय में करवाचौथ के मौके पर महिलाएं एक दूसरे को भी करवा तोहफे में देती थी. इसके अलावा महिलाएं दूसरी सुहागिन महिलाओं को सुहाग से जुड़े छोटे-छोटे तोहफे जैसे बिंदी, चूड़ी और सिंदूर देती थी.

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आज के मॉडर्न समय में करवाचौथ पर पार्लर बुक किए जाते हैं. डिजाइनर लहंगे और थीम से रिलेटेड पूजा की तैयारी की जाती है. महिलाएं दिनभर की फोटो और रील सोशल मीडिया पर शेयर करती है. हालांकि समय के साथ इन बदलावों के बाद आज भी इस त्योहार का महत्‍व वहीं माना जाता है. 

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