Sound In Space: अंतरिक्ष में चिल्ला-चिल्लाकर फट जाएगा गला लेकिन सुनाई नहीं देगी आवाज, जानते हैं क्यों?
आवाज रोशनी की तरह नहीं होती. यह अपने आप यात्रा नहीं कर सकती. जब भी हम कुछ बोलते हैं तो हमारे स्वर वाइब्रेशंस पैदा करते हैं और यह वाइब्रेशंस आसपास के वायु कणों को धकेलते हैं. आवाज एक कण से दूसरे कण तक ऊर्जा को पहुंचा कर आगे बढ़ती है. पृथ्वी में वायु उस जरिए का काम करती है लेकिन अंतरिक्ष में वायु के बिना ध्वनि के पास गति करने के लिए कुछ भी नहीं होता.
अंतरिक्ष सिर्फ एक खाली जगह नहीं है बल्कि यहां पर काफी ज्यादा वैक्यूम है. यानी कि इसमें बहुत कम कण हैं. बिना वायु और बिना पदार्थ के ध्वनि तरंगों को ले जाने के लिए यहां कुछ भी मौजूद नहीं है.
पृथ्वी पर हवा अरबों सूक्ष्म कणों से भरी हुई होती है. जब हमारे वोकल कॉर्ड्स वाइब्रेट करते हैं वह इन कणों को धकेलते हैं. इसी के साथ ऊर्जा तरंगों के रूप में दूसरे व्यक्ति के कान तक आवाज पहुंचती है. सुनने का एहसास इसलिए होता है क्योंकि यह तरंग कान के पर्दे तक पहुंचती है. अब क्योंकि अंतरिक्ष में कण नहीं है इस वजह से आपके स्वर कंपन तरंगे नहीं बना सकते.
वैसे तो आवाज अंतरिक्ष में यात्रा नहीं कर सकती लेकिन इसके बावजूद भी आप खुद को बोलते हुए महसूस करेंगे. इंसान का शरीर हड्डियों और टिशूज के जरिए से आंतरिक रूप से कुछ ध्वनि का संचार करता है. यही वजह है कि आप अपने कान बंद करके भी खुद को गुनगुनाते हुए सुन सकते हैं. लेकिन कोई भी बाहरी इंसान हमें नहीं सुन पाएगा, यहां तक कि हमारे बगल में खड़ा हुआ कोई व्यक्ति भी नहीं.
अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्री एक दूसरे से सिर्फ इसलिए बात कर सकते हैं क्योंकि उनके अंतरिक्ष सूट में रेडियो संचार प्रणाली होती है. उनकी आवाज रेडियो संकेत में बदल जाती है जिन्हें हवा की जरूरत नहीं होती.
अंतरिक्ष में दबाव काफी कम होता है जबकि ध्वनि को कणों को गति देने के लिए दबाव की जरूरत होती है. दबाव और कणों के बिना ध्वनि तरंगें फैल नहीं सकती.