प्लेन और कार में तो सीट बेल्ट होता है, फिर ट्रेन में ये क्यों नहीं होता?
जब कोई कार दुर्घटनाग्रस्त होती है तो अंदर बैठे यात्री को कितनी चोट लगेगी, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसने सीट बेल्ट पहनी थी या नहीं. अगर कार में बैठे इंसान ने सीट बेल्ट पहनी होती है तो दुर्घटना में उसके बचने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है.
वहीं, दूसरी ओर प्लेन में सीट बेल्ट तब लगाई जाती है, जब प्लेन या तो टेक ऑफ कर रहा हो या लैंड कर रहा हो. क्योंकि इस समय यात्रियों के अपनी जगह से उठने से प्लेन का बैलेंस बिगड़ सकता है और दुर्घटना हो सकती है. इसीलिए यात्रियों को आइए दौरान सीट बेल्ट पहनने के लिए कहा जाता है.
कार इतनी हल्की होती है कि एक्सीडेंट के दौरान वह पलटती हुई बहुत दूर तक जाती है. ऐसे में यात्री सीट बेल्ट पहने हुए नहीं होगा तो उसे बहुत ज्यादा चोट आने की संभावना होती है. वहीं, बात अगर ट्रेन की करें, तो ट्रेन के डिब्बे काफी भारी होते हैं.
इतने भारी भरकम डिब्बे का अगर एक्सीडेंट हो भी जाता है तो अंदर बैठे यात्रियों को ज्यादा क्षति नहीं पहुंचती है. एक सामान्य विचार यह है कि ट्रेन बड़ी और भारी होती है, ऐसे में इसके डिब्बों का फ्रेम भी यात्रियों की रक्षा करता है.
इसके अलावा, अगर ट्रेन का एक्सीडेंट होता भी है तो अचानक से लगने वाला झटका कार के मुकाबले थोड़ा कम होता है. ज्यादातर झटके को डिब्बों के बीच लगे शॉकर झेल लेते हैं.