झंडे में लाल-सफेद-हरा सब रंग दिखा, पर पर्पल नहीं? आखिर क्यों ‘कंट्री फ्लैग’ से गायब रहता है यह कलर?
दुनिया के हर देश का झंडा किसी न किसी पहचान, इतिहास और भावनाओं का प्रतीक होता है, लेकिन इन झंडों की भीड़ में एक चीज सबसे ज्यादा चौंकाती है, बैंगनी रंग की लगभग पूरी अनुपस्थिति. ऐसा क्यों? आखिर क्यों सभी देशों ने झंडों में पर्पल रंग को नजरअंदाज किया?
आज बैंगनी रंग आपको कपड़ों, लाइटिंग, इंटीरियर और फैशन की दुनिया में आसानी से दिख जाता है, लेकिन इतिहास के लंबे दौर में यह ‘रंग’ नहीं, बल्कि ‘शक्ति’ और ‘शाही अधिकार’ का निशान था. बैंगनी रंग की कीमत इतनी अधिक थी कि इसे खरीदना एक समय पर सोना खरीदने से भी महंगा माना जाता था.
लेकिन यह इतना महंगा क्यों था, इसका कारण छुपा है उसके स्रोत में- एक छोटे से समुद्री घोंघे ‘म्योरैक्स’ में. यह घोंघा लेबनान के तट पर मिलता था, और इसकी ग्रंथि से बेहद कम मात्रा में बैंगनी रंग निकलता था. समस्या यह थी कि एक ग्राम रंग तैयार करने के लिए 10,000 से ज्यादा घोंघे मारने पड़ते थे. यही कारण था कि पर्पल रंग इतिहास में सबसे महंगे रंगों की सूची में शीर्ष पर रहा.
पुराने दौर में जब झंडे हाथ से बनाए जाते थे, तब लाखों में बिकने वाला रंग किसी देश के लिए सिर्फ एक रंग नहीं, बल्कि आर्थिक बोझ बन जाता था. यही वजह थी कि मध्यकालीन साम्राज्य, राजघराने, और यहां तक कि उभरते राष्ट्र भी इस रंग से दूरी बनाए रखते थे.
झंडे में पर्पल डालना उस समय एक पूरी युद्ध की लागत के बराबर पड़ सकता था. अब आप ही सोचिए, कौन यह जोखिम लेता? इतिहास में बैंगनी सिर्फ महंगा नहीं था, यह सत्ता का प्रतीक भी बन गया था. यूरोप के कई देशों में यह कानून बन चुका था कि पर्पल सिर्फ शाही परिवार, साम्राज्य के उच्च पदस्थ लोगों या धार्मिक प्रमुखों के लिए आरक्षित होगा.
सबसे मशहूर उदाहरण ब्रिटेन की क्वीन एलिजाबेथ द्वारा दिया गया आदेश है. साधारण जनता पर्पल नहीं पहन सकती है. रंग पर ऐसा प्रतिबंध दुनिया में कहीं और शायद ही देखने को मिले. तो, जब पर्पल रंग आम लोगों के कपड़े तक नहीं छू सकता था, तो किसी राष्ट्र के झंडे तक पहुंचना लगभग असंभव ही था. यही वजह है कि दुनिया के लगभग सभी झंडों ने इसे नजरअंदाज किया.
लेकिन इस कहानी का दिलचस्प मोड़ यह है कि आधुनिक दुनिया में सिर्फ दो देशों ने इस परंपरा को तोड़ा. डॉमिनिका और निकारागुआ इन दोनों के झंडों में पर्पल रंग दिखाई देता है, वो भी बहुत छोटी मात्रा में. इन दोनों देशों ने पर्पल को अपनी ऐतिहासिक या प्राकृतिक पहचान से जोड़कर स्थान दिया, हालांकि यह प्रयोग भी झंडे की पूरी सतह पर नहीं बल्कि प्रतीक चिन्हों में ही दिखता है.