एक से बढ़कर एक हथियार होने के बाद भी क्यों है एके-47 का बोलबाला, जानिए इसकी खासियत
भारत में एके 47 राइफल का इस्तेमाल सिर्फ आर्मी या फिर पुलिस की स्पेशल फोर्स इस्तेमाल करती है. इसके अलावा किसी के लिए भी इसका इस्तेमाल करना अवैध है. यहां तक की इसको रखना भी गैरकानूनी है.
अगर यह किसी भी खास आदमी के पास से बरामद की जाती है तो उसके खिलाफ सीधा देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाता है. यह राइफल पहली बार 1947 में बनी थी. इसका पूरा नाम Automatic Kalashnikov-47 है.
फुल लोड होने के बाद भी इस राइफल का ज्यादा से ज्यादा वजन 4 किलो के आसपास होता है. इसके जरिए एक मिनट में करीब 600 राउंड फायर किए जा सकते हैं. यानि कि 1 सेकंड में 10 गोली दागी जा सकती है.
एके-47 में एकबार में 30 गोलियां भरी जा सकती हैं. इस बंदूक का इस्तेमाल किसी भी मौसम में किया जा सकता है और इसे चलाने के लिए किसी भी तरह की खास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है.
एके-47 से एक बार गोली छूटने के बाद इसकी रफ्तार 710 मीटर प्रति सेकंड होती है. यह राइफल इतनी पावरफुल होती है कि दीवारों और कार के दरवाजे को भी भेदकर उसके पीछे बैठे इंसान को मार सकती है.
हल्की होने की वजह से इस बंदूक को रखना भी आसान होता है. ऐसा कहा जाता है कि एके-47 से 800 मीटर की दूरी तक निशाना बनाया जा सकता है. सैनिक इस राइफल का इस्तेमाल इसलिए करते हैं, क्योंकि यह धोखा नहीं देती है.
ठंड, रेत, गर्मी, कीचड़ यह राइफल इन सबका सामना कर सकती है. महीनों तक इसकी सफाई न हो तो भी एके-47 आसानी से काम करती है. सोवियत यूनियन ने बड़े पैमाने पर इस बंदूक का उत्पादन किया और मित्र देशों को बंदूक बेचकर इसका ब्लूप्रिंट शेयर किया.