एक दर्जन में 12 केले ही क्यों होते हैं, 10 या 11 क्यों नहीं; किसने तय किया ये पैमाना?
जब भी हम बाजार जाते हैं और जब केला खरीदने की बारी आती है तो हम दुकानदार से कहते हैं 'एक दर्जन केले दे दीजिए' या 'दो दर्जन केले चाहिए' और फल वाला हमें 12 केले दे देता है ऐसा क्यों?
क्या आपने कभी सोचा कि एक दर्जन में हमेशा 12 चीजें ही क्यों होती हैं? 10 या 11 क्यों नहीं? यह 12 का आंकड़ा आया कहां से? तो चलिए इसी सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं.
12 की संख्या का महत्व प्राचीन मिस्र, बेबीलोन और रोमन सभ्यताओं में देखा जा सकता है. वे समय, कैलेंडर और माप में 12 का इस्तेमाल करते थे. इन सभ्यताओं में गणना के लिए 12 आधार वाली प्रणाली का इस्तेमाल होता था.
इसका एक बड़ा कारण था इंसान की उंगलियों की संरचना. अगर आप अपने अंगूठे को छोड़कर बाकी उंगलियों को गिनेंगे तो एक हाथ में 12 जोड़ होते हैं. प्राचीन लोग इन जोड़ों का इस्तेमाल गिनती के लिए करते थे.
इसके अलावा 12 एक बहुत ही सुविधाजनक संख्या है क्योंकि इसे कई हिस्सों में आसानी से बांटा जा सकता है. 12 को 1, 2, 3, 4, 6 और 12 से भाग दिया जा सकता है. जिसने व्यापारियों और दुकानदारों के लिए 12 को एक आदर्श संख्या बना दिया. जिससे लेने देने जल्दी हो जाता था.
अगर आप केला लेने जाते हैं और आपको थोड़े केले चाहिए तो केले को बांटना बहुत आसान है. 12 केले को दुकानदार 6-6 के ग्रुप या 3-3 के चार ग्रुप में बांटकर ग्राहक को दे सकता है.
यह प्रणाली प्राचीन भारत से शुरू हुई और अरब व्यापारियों के जरिए पूरी दुनिया में फैली. आज हमारे बाजारों में फल, अंडे या अन्य सामान अक्सर दर्जन में बिकते हैं.