Trump Tariff on Indian Rice: भारत के चावल से खुन्नस में क्यों ट्रंप, इस पर क्यों लगाना चाहते हैं टैरिफ?
भारत से आने वाला बासमती चावल अमेरिकी लोगों में काफी पसंद किया जाता है. इसकी सुगंध, लंबाई और खास टेस्ट की वजह से यह अमेरिकी चावल से अलग है.अमेरिका में भारतीय बासमती की कीमत लगभग $2 से $4 प्रति किलो है. यह अमेरिकी एशियाई समुदाय में खासा लोकप्रिय है और बिरयानी जैसे व्यंजनों में इसकी मांग बढ़ रही है.
अमेरिकी किसानों का कहना है कि भारत, थाईलैंड और चीन से आने वाला सस्ता चावल उनके लिए नुकसानदेह है. वे इसे डंपिंग का मामला मानते हैं. डंपिंग का मतलब है कि कोई देश अपने उत्पाद को बहुत सस्ते दाम में बेचकर दूसरे देश के स्थानीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचाता है. अमेरिकी किसान चाहते हैं कि इस पर सख्त कार्रवाई हो.
अमेरिका में भी चावल पैदा होता है. मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों जैसे लुइसियाना, अर्कांसास, मिसिसिपी, मिसौरी और टेक्सास में।,अर्कांसास अमेरिका का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य है, जो लगभग 50 प्रतिशत उत्पादन देता है फिर भी, अमेरिकी चावल की क्वालिटी और टेस्ट भारतीय बासमती से मेल नहीं खाते हैं.
पहले अमेरिकी बाजार में भारतीय बासमती चावल पर 10 प्रतिशत का आयात शुल्क था. लेकिन अब यह लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ चुका है, जिसमें 25 प्रतिशत टैरिफ और 25 प्रतिशत पेनल्टी शामिल है. ट्रंप ने भारतीय चावल पर डंपिंग का आरोप लगाया है और अब उन्होंने इस पर और कड़ा टैरिफ लगाने का संकेत दिया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नया टैरिफ लागू होता है तो इसका सबसे बड़ा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. भारतीय बासमती का कोई अमेरिकी ऑप्शन नहीं है, इसलिए कीमतें बढ़ेंगी, लेकिन लोग इसे खरीदने के लिए मजबूर होंगे. इससे अमेरिकी परिवारों के लिए चावल महंगा हो जाएगा, खासकर उन व्यंजनों के लिए जो बासमती पर निर्भर हैं.
अमेरिका में भारतीय चावल के अलावा थाईलैंड, वियतनाम और चीन से भी चावल आता है. थाईलैंड का जैस्मीन चावल सुगंधित और लोकप्रिय है. वियतनाम का लांग ग्रेन चावल सस्ता है. लेकिन भारतीय बासमती की खासियत और प्रीमियम क्वालिटी इसकी अलग पहचान बनाती है.