घोड़ा कभी बैठता क्यों नहीं, खड़े-खड़े कैसे पूरी कर लेता है अपनी नींद?
घोड़े का न बैठना उसकी आदत नहीं, बल्कि उसकी शारीरिक बनावट और जैविक मजबूरी है. घोड़ों की रीढ़ की हड्डी सीधी और लंबी होती है. अगर वह लंबे समय तक बैठता या लेटता है तो उसके पेट और फेफड़ों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है.
इससे श्वसन तंत्र प्रभावित हो सकता है और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. यही कारण है कि घोड़ा बैठने से बचता है और खड़े रहना उसके लिए ज्यादा सुरक्षित और आरामदायक होता है.
घोड़े मूल रूप से शिकार बनने वाले जानवर हैं जंगलों और घास के मैदानों में उन्हें हर समय शेर, भेड़िये जैसे शिकारियों का खतरा रहता था. विकास की प्रक्रिया में वही जीव बच पाए जो खतरे के समय तुरंत भाग सकें.
खड़े रहने से घोड़े को यह फायदा मिलता है कि किसी भी आहट या खतरे का संकेत मिलते ही वह पल भर में दौड़ सकता है. बैठने या लेटने की स्थिति में उठने में समय लगता है, जो जानलेवा साबित हो सकता है.
घोड़ों की सबसे खास शारीरिक व्यवस्था को ‘स्टे अपरेटस’ कहा जाता है. यह टेंडन, लिगामेंट और हड्डियों का एक ऐसा तंत्र है जो घोड़े के पैरों के जोड़ों को लॉक कर देता है. इस सिस्टम की वजह से घोड़ा बिना मांसपेशियों पर जोर डाले लंबे समय तक खड़ा रह सकता है.
घुटनों और टखनों के जोड़ों में लॉकिंग मैकेनिज्म सक्रिय हो जाता है, जिससे शरीर का वजन संतुलित रहता है और ऊर्जा की खपत बेहद कम होती है. घोड़ा खड़े होकर हल्की नींद ले सकता है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में नॉन-आरईएम स्लीप कहा जाता है.
इस अवस्था में दिमाग आंशिक रूप से सतर्क रहता है और शरीर आराम करता है. दिनभर की थकान उतारने के लिए यह नींद काफी होती है. स्टे अपरेटस की मदद से घोड़ा झपकी लेता है, गिरता नहीं और किसी खतरे की स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया दे सकता है.