Natural Diamonds: जब लैब में बनाया जा सकता है हीरा तो क्यों खदानों को खोदते हैं मजदूर, कितना महंगा है ये प्रॉसेस
सदियों से प्राकृतिक हीरों को धरती का खजाना माना जा रहा है. यह काफी दुर्लभ और कीमती होते हैं. इनकी उत्पत्ति सतह के नीचे से होती है.
प्रयोगशाला में उगाए गए हीरे रासायनिक रूप से प्राकृतिक हीरों के जैसे ही होते हैं. लेकिन इसके बावजूद भी खरीदार अक्सर असली हीरों को ज्यादा महत्व देते हैं.
वैसे तो टिकाऊ और नैतिक विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ रही है लेकिन इसके बावजूद भी कहीं उपभोक्ता शादियों और विरासत के लिए अभी भी खनन किए गए हीरों को ही पसंद करते हैं.
प्रयोगशाला में हीरे बनाना कोई काम लागत वाला काम नहीं है. हाई प्रेशर हाई टेंपरेचर और केमिकल वेपर डिपोजिशन रिएक्टर जैसे खास उपकरण करोड़ों रुपए में आते हैं. इसी के साथ इन्हें चलाने के लिए भी विशेषज्ञों की जरूरत होती है.
प्रयोगशाला में हीरे उगाने में कई हफ्ते लग जाते हैं और साथ इसमें काफी बिजली की खपत भी होती है. हालांकि यह प्रक्रिया प्राकृतिक निर्माण की तुलना में तेज है लेकिन ऊर्जा की ज्यादा खपत उत्पादन लागत को बढ़ा देती है.
जब प्रयोगशाला उत्पादन का विस्तार करती है तो प्रति कैरेट लागत में काफी ज्यादा कमी आती है. यही वजह है की प्रयोगशाला में बनाए गए हीरे धीरे-धीरे ज्यादा किफायती होते जा रहे हैं.