Airplane Fuel: हवाई जहाज में सिर्फ केरोसिन ही क्यों डाला जाता है पैट्रोल या डीजल क्यों नहीं, जानें क्या है वजह
हवाई जहाज ऐसी ऊंचाई पर उड़ते हैं जहां पर तापमान माइनस 50 डिग्री सेल्सियस या फिर उससे भी कम हो सकता है. केरोसिन का कम फ्रीजिंग प्वाइंट- 47 डिग्री सेल्सियस इसे तरल अवस्था में रखता है और साथ ही इंजन में बहने में मदद करता है. अगर डीजल की बात करें तो ऐसी ठंडी परिस्थितियों में वह जम सकता है और ईंधन लाइनों को ब्लॉक कर सकता है. इसके अलावा पेट्रोल काफी आसानी से वाष्पित हो जाता है जिससे आग लगने का खतरा रहता है.
केरोसिन का फ्लैश प्वाइंट पेट्रोल से ज्यादा होता है। यानी कि केरोसिन को जलाने के लिए ज्यादा गर्मी की जरूरत होती है। इससे ईंधन भरने या फिर भंडारण के समय अचानक से आग लगने का जोखिम काफी कम हो जाता है.
केरोसिन पेट्रोल या फिर डीजल की तुलना में प्रति लीटर ज्यादा ऊर्जा प्रदान करता है. इसका मतलब है कि यह लंबी दूरी की उड़ानों के लिए बिल्कुल सही है.
आधुनिक हवाई जहाज जेट या फिर टर्बाइन इंजन का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें निरंतर, स्थिर दहन की जरूरत होती है. केरोसिन का केमिकल कंपोजिशन इसे बिना अचानक विस्फोट के स्थिर रूप से जलने देता है जो निरंतर ट्रस्ट को बनाए रखती है. टर्बाइन इंजनों के लिए डीजल काफी धीरे जलता है जबकि पेट्रोल काफी ज्यादा तेजी से जलता है.
केरोसिन इंजन के पुर्जों को चिकनाई देने में भी काफी मदद करता है. इसे जरूरी पुर्जों पर ज्यादा घिसाव रुकता है और इंजन की आयु बढ़ती है.
केरोसिन को अगर लंबे समय तक भी रखा जाए तो वह आसानी से खराब या फिर वाष्पित नहीं होता. यही वजह है कि विमान लंबी उड़ानों में सुरक्षित रूप से इंधन ले जा पाते हैं.