किसने लिखा था 'जय हिंद' का नारा? जानिए सुभाष चंद्रबोस ने किसके सुझाव पर बुलंद की थी इसकी आवाज
जय हिंद का सीधा अर्थ है, भारत की विजय हो. यह नारा आजादी के संघर्ष के दौरान भारतीयों को जोड़ने वाला सूत्र बना. धीरे-धीरे यह सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि राष्ट्रीय गर्व और एकता का प्रतीक बन गया.
20वीं सदी की शुरुआत में तमिल स्वतंत्रता सेनानी चेंपकरमन पिल्लई ने 'जय हिंद' का प्रयोग करना शुरू किया. वे इसे छात्रों और साथियों के बीच अभिवादन के रूप में इस्तेमाल करते थे. यहीं से इस नारे की नींव पड़ी.
हैदराबाद की क्रांतिकारी आबिद हसन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ आजाद हिंद फौज में जुड़े थे. उन्होंने नेताजी को एक ऐसा नारा सुझाया जो पूरे भारत को जोड़ सके. उन्होंने 'जय हिंद'कहा और यह बॉस को तुरंत पसंद आ गया.
सुभाष चंद्र बोस एक ऐसा नारा चाहते थे जो किसी खास भाषा, धर्म या जाति से न जुड़ा हो. 'जय हिंद' उनके इस विजन के बिल्कुल अनुकूल था. यही कारण है कि उन्होंने इसे आजाद हिंद फौज का आधिकारिक अभिवादन बना दिया.
नेताजी ने जब जय हिंद को अपनाया तब यह नारा केवल सेना तक सीमित नहीं रहा. उनके भाषणों और परेड में बार-बार यह गूंजता था, जिससे यह पूरे देश में फैल गया और आजादी के आंदोलन की पहचान बन गया.
15 अगस्त 1947 को लाल किले से अपने पहले भाषण में पंडित नेहरू ने भी समापन 'जय हिंद' से किया. इसके बाद यह नारा पूरे भारत का राष्ट्रीय अभिवादन बन गया.
आज भी सेना की सलामी, स्कूल की प्रार्थना, नेताओं के भाषण और आम नागरिकों के जोश में 'जय हिंद' गूंजता है. यह नारा भारत की आजादी एकता और गर्व की पहचान बन चुका है.