भारत में पहली बार कब दी गई थी '21 तोपों की सलामी', क्या अब भी जारी है रिवाज?
आज के समय में गणतंत्र दिवस स्वतंत्रता दिवस या किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को सम्मान देने के लिए 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस प्रक्रिया को बहुत सम्मानजनक माना जाता है.
26 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला, जिसके बाद वो घोड़ा गाड़ी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन से इरविन एम्फीथिएटर (मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) पहुंचे. यहां पहली बार देश के राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी गई थी.
21 तोपों की सलामी का अंतरराष्ट्रीय मानदंड बन गया. साल 1971 के बाद से 21 तोपों की सलामी, राष्ट्रपति और अतिथि राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान मानी जाने लगी. इसके अलावा, नए राष्ट्रपति की शपथ के दौरान और कुछ खास चुनिंदा अवसरों पर भी ये सलामी दी जाती है.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अब जो सलामी दी जाती है उसमें गोले तो 21 होते हैं, लेकिन तोपें सिर्फ 8 होती हैं, जिसमें से सलामी के लिए 7 तोपें ही इस्तेमाल की जाती है.
हर तोप से 3 गोले फायर किए जाते हैं. सलामी देने के लिए लगभग 122 जवानों का एक दस्ता होता है, जिसका हेडक्वार्टर मेरठ में है. जो भारतीय सेना की स्थाई रेजीमेंट नहीं होती है.