गरीबी और महागरीबी में क्या है अंतर और कैसे तय होते हैं मानक?
उस समय साल 1971 में अर्थशास्त्री वी. एम. दांडेकर और एन. रथ ने तर्क दिया था कि गरीबी रेखा का निर्धारण ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में 2,250 कैलोरी रोजाना की जरूरत पर होने वाले खर्च के आधार पर किया जाना चाहिए.
एम. दांडेकर और एन. रथ ने अपने इस फॉर्मूले के आधार पर पाया कि ग्रामीण क्षेत्र की एक-तिहाई आबादी और शहरी क्षेत्र की आधी आबादी को कैलोरी के आधार पर पर्याप्त भोजन नहीं मिलता. हालांंकि समय-समय पर गरीबी और अति गरीबी की पहचान करने वाला पैमाना बदलता रहा है.
योजना आयोग ने साल 2013 में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व अध्यक्ष सी. रंगराजन की अगुआई में एक नई समिति का गठन किया.
जुलाई 2014 में उनके द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में इस समिति ने गरीबी रेखा का निर्धारण करने के लिए पोषण, कपड़ा, आवास का किराया, परिवहन खर्च, शिक्षा के साथ ही गैर खाद्य मदों पर खर्च को भी ध्यान में रखा.
समिति ने सुझाव दिया कि ग्रामीण भारत में 27 रुपये रोजाना और शहरी क्षेत्र में 33 रुपये रोजाना से अधिक कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर माना जाए. इस तरह अब गरीबों का एक नया आंकड़ा सामने आया. देश की कुल 29.5 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के दायरे में आ गई.
फिलहाल देश में 80 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत राशन दिया जा रहा है. इससे साफ होता है कि अब भी देश की 58 फीसदी आबादी गरीबी की जगड़ में है. जो काफी चिंता का विषय है.