क्या होती है जीपीएस स्पूफिंग, इससे फ्लाइट की लैंडिंग पर कितना पड़ता है असर?
दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर बीते कुछ दिनों से एक नई चुनौती सामने आई है, GPS स्पूफिंग की. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले तीन दिनों में कई फ्लाइट्स को अपनी तय दिशा से हटकर उड़ना पड़ा, कई को तो डायवर्ट तक करना पड़ा.
जब पूर्वी हवाएं चलती हैं, तो यह समस्या और गंभीर हो जाती है, क्योंकि तब जहाज द्वारका की ओर से लैंड करते हैं और वसंत कुंज की तरफ से टेकऑफ करते हैं.
GPS स्पूफिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें नकली सैटेलाइट सिग्नल भेजकर किसी सिस्टम को भ्रमित किया जाता है. यानी असली GPS की तरह दिखने वाले फर्जी सिग्नल हवाई जहाज के नेविगेशन सिस्टम में गलत लोकेशन, दिशा और समय की जानकारी भेजते हैं.
ऐसे में पायलट को लगता है कि जहाज सही रास्ते पर है, जबकि वास्तव में वो रास्ते से भटक चुका होता है. यह तकनीक जैमिंग से अलग होती है. जैमिंग में सिग्नल पूरी तरह ब्लॉक कर दिए जाते हैं, जबकि स्पूफिंग में गलत डेटा भेजा जाता है, यानी पायलट्स को धोखा दिया जाता है.
GPS स्पूफिंग का सबसे बड़ा खतरा फ्लाइट की लैंडिंग और टेकऑफ के दौरान होता है, क्योंकि उस वक्त पायलट को सटीक लोकेशन और ऊंचाई की जानकारी चाहिए होती है.
यदि गलत सिग्नल मिल जाए, तो जहाज गलत दिशा में उतर सकता है या रनवे मिस कर सकता है. यही वजह है कि हाल के दिनों में दिल्ली एयरपोर्ट पर कई फ्लाइट्स डायवर्ट करनी पड़ीं.
विशेषज्ञों का कहना है कि GPS स्पूफिंग सिविल एविएशन के लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि इससे न केवल फ्लाइट की दिशा बिगड़ सकती है, बल्कि एयर ट्रैफिक सिस्टम भी गड़बड़ा सकता है. एयरलाइंस ने अपने पायलटों को अलर्ट कर दिया है और सलाह दी है कि वे पुरानी नेविगेशन तकनीक (INS) का इस्तेमाल करें ताकि GPS पर पूरी तरह निर्भरता न रहे.