बिजली के सॉकेट में मोटी वाली पिन का क्या काम होता है, जबकि इसमें तो करंट भी नहीं आता?
सॉकेट के नीचे वाले 2 छेदों में से एक में करंट बहता है और दूसरा न्यूट्रल होता है. आप इन दोनों में किसी भी उपकरण का तार लगाकर अपनी जरूरत को पूरा कर सकते हैं. इसके लिए तीसरे या ऊपर वाले बड़े छेद की जरूरत नहीं होती. लेकिन, तब भी सभी सॉकेट में यह होता है. दरअसल, यह आपकी ओर उससे चलने वाले उपकरण की सेफ्टी के लिए होता है. आपने देखा होगा कि बहुत कम लोड वाले उपकरणों, जैसे फोन चार्जिंग के लिए 2 पिन वाला सॉकेट इस्तेमाल होता है. जबकि, ज्यादा लोड वाले उपकरण, जैसे एसी, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि के लिए 3 पिन वाला प्लग इस्तेमाल किया जाता है.
देखा जाए तो ये उपकरण भी दो वायर से चल सकते हैं. तब भी इनमें तीन पिन होते हैं. प्लग के तीसरे पिन का कनेक्शन सीधा सॉकेट के साथ होता है. सॉकेट में मौजूद ऊपर वाले बड़े छेद में न तो करंट आता है और न ही न्यूट्रल रहता है. असल में सॉकेट में यह तीसरा छेद अर्थिंग (Earthing) के लिए होता है. सॉकेट का तीसरा छेद बाकी 2 की तुलना में ज्यादा लंबा होता है. वो इसलिए ताकि जब प्लग लगाया जाए तो अर्थ पिन अन्य 2 (लाइव और न्यूट्रल) से पहले बिजली की आपूर्ति के संपर्क में आए. ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर सर्किट में पहले से कोई चार्ज हो तो वो हट जाए.
सेफ्टी के नजरिए से यह बहुत काम का होता है. अगर एर्थिंग के जाइए किसी की बॉडी में करंट प्रवाहित होने भी लगता है तो उसे बिजली का झटका तो लगेगा, लेकिन यह ज्यादा खतरनाक नहीं होगा. इस तरह प्लग की तीसरी पिन आपको सुरक्षा देती है.
जानकारी के अुनसार इस पिन को बाकी पिन से मोटा और लंबा बनाया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यह सॉकेट के छेद में सबसे पहले जाए और बाद में बाहर निकलें. मोटा होने की वजह से अर्थिंग का पिन अर्थिंग के सॉकेट में ही जायेगा यानी भूलवश या गलती से भी प्लग को गलत तरह से न लगाया जा सकता.
इस तरह यह उपकरण को भी सुरक्षा प्रदान करती है, क्योंकि कभी-कभी पिन के गलत तरह से सॉकेट में लगने पर गलत परिपथ बन कर उपकरण खराब होने की संभावना रहती है. इसलिए इसके होने पर इस तरह की संभावना बिल्कुल खत्म हो जाती है.