Diwali 2025: एक दो नहीं, इतने तरह के होते हैं ग्रीन पटाखे, जानें कैसे पहचानें असली और नकली पटाखे?
ग्रीन पटाखे तीन तरह के होते हैं. सेफ वाटर रिलीजर, सेफ थर्माइट क्रैकर और सेफ मिनिमल अल्युमिनियम. हर पटाखा हानिकारक उत्सर्जन को कम करने के लिए डिजाइन किया गया है. सेव वाटर रिलीजर जलवाष्प छोड़ता है जो धूल के कणों को फंसा लेता है. इसी के साथ सेफ थर्माइट क्रैकर सल्फर और पोटेशियम नाइट्रेट को हटाता है और सेफ मिनिमल अल्युमिनियम, अल्युमिनियम और मैग्नीशियम की मात्रा को कम करके शोर और धुएं को कम करता है.
इन पटाखों को व्यवसायिक पटाखा निर्माता द्वारा नहीं बल्कि सरकारी अनुसंधान संस्था CSIR-NEERI के द्वारा बनाया गया है. इनका उद्देश्य वायु प्रदूषण को पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30% कम करना है.
असली ग्रीन पटाखे पर एक खास QR कोड होता है. इस कोड को स्कैन करके निर्माता का नाम, लाइसेंस और प्रमाणन जैसी जानकारी मिल सकती है. अगर कोड काम नहीं करता या झूठी जानकारी देता है तो इसका मतलब यह पटाखे ग्रीन नहीं है.
प्रमाणिकता को पक्का करने के लिए असली पटाखों पर CSIR-NEERI का लोगों और पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन का प्रमाणन अंकित होता है. सिर्फ पीईएसओ द्वारा लाइसेंस प्राप्त निर्माता को ही भारत में ग्रीन पटाखों का उत्पादन और वितरण करने की कानूनी अनुमति है.
कभी भी हरे रंग का लोगो और साफ पारदर्शी पैकेजिंग देखकर धोखा ना खाएं. नकली निर्माता अक्सर ग्राहकों को गुमराह करने के लिए हरे रंग की नकल करते हैं. इसलिए हमेशा खरीदने से पहले कोड और प्रमाणन लेबल जरूर देख लें.
पारंपरिक पटाखों के विपरीत ग्रीन पटाखे कम प्रदूषण और ध्वनि नियंत्रण का फायदा देते हैं. पारंपरिक पटाखों की ध्वनि 160 डेसीबल से ज्यादा हो सकती है वही असली ग्रीन पटाखे 110-125 डेसिबल तक सीमित होते हैं.