इतने वोल्टेज के होते हैं ट्रेन के ऊपर लगे तार, जानिए इससे इंजन को कैसे मिलती है बिजली
भारतीय रेलवे को देश की लाइफ लाइन कहा जाता है. यहां हर दिन लाखों लोग ट्रेन से सफर करते हैं. यही कारण है कि रेलवे अपनी सुविधाओं को तेजी से बढ़ा रही है और सुरक्षा प्रणाली मजबूत कर रही है.
आपने ट्रेन में सफर करने के दौरान देखा होगा कि अधिकांश रूट पर रेलवे की इलेक्ट्रिक तार दौड़ रही है. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि ये तार कितने वोल्टेज के होते हैं. आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे.
देश में इलेक्ट्रिक इंजनों के आने से रफ्तार के साथ साथ पर्यावरण को भी बहुत फायदा हुआ है. अब ट्रेनों को कोयले की जरूरत भी नहीं पड़ती है. अभी देश में दो लोकोमोटिव का इस्तेमाल होता है, जिसमें पहला इलेक्ट्रिक और दूसरा कहीं कहीं डीजल लोकोमोटिव है.
बता दें कि इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव से चलने वाली ट्रेनों को करंट बिजली ओवरहेड वायर के जरिए मिलती है. इसमें ट्रेन के ऊपर लगी पेंटोग्राफ के माध्यम से इलेक्ट्रिक वायर लगातार इंजन को बिजली पहुंचाता है. इसमें बिजली ट्रेन में स्थित ट्रांसफॉर्मर तक पहुंचती है, यहां से यह कम और ज्यादा होती है.
एक इलेक्ट्रिक इंजन को चलने के लिए 25 हजार वोल्टेज की जरूरत होती है, जिसकी सप्लाई सीधे पावर ग्रिड से इंजन को मिलती है. वहीं किसी भी इलेक्ट्रिक ट्रेन में दो तरह के पेंटोग्राफ का यूज किया जाता है. इसमें डबल डेकर पसेंजर के लिए WBL का उपयोग होता है, तो नार्मल ट्रेन के लिए हाई स्पीड पेंटोग्राफ यूज किया जाता है.