दो बार हुई थी इस मुगल बादशाह की ताजपोशी, बेटों के कटे सिर देख कही थी यह बात
भारत के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का नाम इतिहास के उस शासक के रूप में दर्ज है, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारत की आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी. 24 अक्टूबर 1775 को जन्मे बहादुर शाह जफर न केवल एक शासक थे, बल्कि उर्दू शायर भी थे. उन्होंने अपनी जिंदगी में कई संघर्ष देखे.
पिता अकबर द्वितीय की मौत के बाद 1837 में बहादुर शाह जफर की मुगल बादशाह के रूप में ताजपोशी हुई. हालांकि, उनके पिता उन्हें उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहते थे, क्योंकि उनकी सौतेली मां चाहती थी कि उनका बेटा मिर्जा जहांगीर गद्दी संभाले. हालांकि, ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से जहांगीर को निर्वासित कर देने के बाद बहादुर शाह जफर के लिए दिल्ली की गद्दी का रास्ता साफ हो गया था. इसके बाद शाही तरीके से बहादुर शाह जफर की पहली बार ताजपोशी की गई.
मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को दिल्ली की गद्दी तो सौंपी गई थी, लेकिन हकीकत में दिल्ली पर अंग्रेजों का राज था. इसके चलते जफर के समय मुगल साम्राज्य सिर्फ पुरानी दिल्ली तक रह गया था. वहीं, मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अंग्रेज पेंशन देते थे और दिल्ली में शासन चलाने की इजाजत बस नाम मात्र की थी.
1857 की क्रांति में जब क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की तो क्रांतिकारी बहादुर शाह जफर के दरबार में पहुंचे और उनसे नेतृत्व करने की मांग की थी. शुरुआत में जफर ने मना कर दिया था, लेकिन जब क्रांतिकारियों ने कहा कि उनके बिना जीत नहीं पाएंगे तो उन्होंने नेतृत्व संभाल लिया. इसके बाद उस समय विद्रोहियों ने जफर को भारत का सम्राट घोषित किया और उनके नाम पर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा था. इस तरह बहादुर शाह जफर की दूसरी बार ताजपोशी हुई थी.
इसके बाद जब दिल्ली पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया तो जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ली. हालांकि, मेजर विलियम ने उन्हें 20 सितंबर 1857 को गिरफ्तार कर लिया. इसके अगले दिन बहादुर शाह जफर के दो बेटों और पोते को दिल्ली गेट के पास गोली मार दी गई थी. बताया जाता है कि जब जफर को भूख लगी थी तो अंग्रेज उनके सामने थाली में उनके बेटों के सिर लेकर आए थे. बेटों के सिर थाली में देखने के बाद जफर ने अंग्रेजों से कहा था कि हिंदुस्तान के बेटे देश के लिए सिर कुर्बान करके अपने बाप के पास इसी अंदाज में आया करते हैं.
अंग्रेजों ने जफर पर लाल किले में मुकदमा चलाया था, जो वहां होने वाला पहला ट्रायल था. 21 दिन तक चले इस मुकदमे में 19 सुनवाई हुईं और 21 गवाह पेश किए गए थे. इस मुकदमे में बहादुर शाह जफर को चार आरोपों में दोषी ठहराया गया था.
आरोप के बाद भी बहादुर शाह जफर को मौत की सजा नहीं दी गई, क्योंकि हडसन ने उन्हें जान से बख्शने का वादा किया था. इसके बाद बहादुर शाह जफर को रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहां 7 नवंबर 1862 में उनकी मौत हो गई.