Karwa Chauth 2025: करवाचौथ पर चांद की ही पूजा क्यों करते हैं, सूरज और तारों की क्यों नहीं?
हिंदू धर्म में चंद्रमा को एक दिव्य शक्ति के रूप में माना जाता है. चंद्रमा मन की शांति, सुकून और स्थिरता का प्रतीक होता है. जब महिलाएं करवा चौथ के दिन लंबा व्रत रखती हैं तो ऐसा कहा जाता है कि चंद्रमा की प्रार्थना करने से उन्हें और उनके परिवार को आंतरिक शांति मिलती है.
करवा चौथ की रस्में चांद को वैवाहिक जीवन में समृद्धि लाने से जोड़ती है. ऐसा कहा जाता है कि चंद्रमा की पूजा करने से पति की लंबी आयु तो होती ही है साथ ही परिवार में सुख और धन की भी कमी नहीं रहती.
करवा चौथ पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख और शांति लाने के लिए मनाया जाता है. चंद्रमा शाश्वत चक्र और पुनर्जन्म से जुड़ा है इसलिए महिलाएं इसे अखंड सौभाग्य का प्रतीक मानकर इसकी पूजा करती हैं.
हिंदू परंपराओं में सूर्य को शक्तिशाली देवता के रूप में माना जाता है. लेकिन करवा चौथ के दौरान इसकी पूजा नहीं की जाती. ऐसा इसलिए क्योंकि यह व्रत सूर्योदय से शुरू होता है. अब क्योंकि व्रत पहले से ही उगते सूरज से जुड़ा है इसलिए सूर्यास्त के समय इसे तोड़ना इस अनुष्ठान से उल्टा हो जाएगा.
करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख शांति प्रदान करने के लिए किया जाता है. यह सब चंद्र देव की पूजा और पति के दर्शन करने से ही संभव होता है. इस व्रत का तारों के साथ कोई सीधा संबंध नहीं है इसलिए तारों की पूजा नहीं होती.
ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश ने एक बार चंद्रमा को श्राप दे दिया था. भगवान गणेश ने कहा था कि जो कोई भी उसे सीधा देखेगा उसे कलंक और दोष का सामना करना पड़ेगा. इसीलिए करवा चौथ के दौरान महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं.