हमसफर एक्सप्रेस से लेकर वंदे भारत तक, आखिर कैसे रखे जाते हैं ट्रेनों के नाम?
कई लोगों को मन में यह सवाल भी आता है कि ट्रेनों के नाम कैसे तय किए जाते हैं. आखिर इसके पीछे क्या लॉजिक लगाया जाता है. और किसके पास अधिकार होता है ट्रेनों के नाम तय करने का. चलिए आपको बताते हैं पूरी जानकारी.
भारतीय रेलवे द्वारा ट्रेनों के नाम रखने की प्रक्रिया काफी सोच समझकर तय की जाती है. इसमें देश की संस्कृति, इतिहास, भूगोल और कई तरह के कारण शामिल होते हैं. उसी हिसाब से ट्रेनों के नाम रखे जाते हैं.
हमसफर ट्रेन की बात की जाए तो यह ट्रेन यात्रियों के बीच जुड़ाव और सफर के साथी होने के विचार को दिखाता है. इसी तरह महाकाल एक्सप्रेस उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर को सर्मपित है. ऐसे ही बुद्ध पूर्णिमा एक्सप्रेस भगवान बुद्ध को समर्पित है.
क्षेत्रीय पहचान के तौर पर बात की जाए तो गोदावरी के आसपास के क्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेन का नाम गोदावरी एक्सप्रेस रखा गया है. सिंधु नदी और उसकी सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने के लिए सिंधु-दरशन एक्सप्रेस चलाई जाती है.
वंदे भारत एक्सप्रेस देश के गौरव को दर्शाने के लिए राष्ट्रप्रेम और आत्मनिर्भरता के लिए जानी जाती है. जन शताब्दी एक्सप्रेस जनता के लिए किफायती और तेज़ ट्रेन सुविधा के लिए चलाई जाती है. राजधानी एक्सप्रेस देश की राजधानी से जोड़ने वाली ट्रेन है.
ट्रेन के नाम रखने की प्रक्रिया के लिए रेलवे बोर्ड की जिम्मेदारी होती है. इसके अलावा राज्य सरकारों और रेलवे जोन से सुझाव मांगे जाते हैं. ट्रेन का रूट और उसकी विशेषता को ध्यान में रखकर नामकरण तय किया जाता है. लेकिन अंतिम फैसल रेल मंत्रालय का होता है.