कितने का आता है असली पश्मीना शॉल? इसकी ये खासियत उड़ा देगी आपके होश
पश्मीना असल में कोई सामान्य ऊन नहीं, बल्कि एक बेहद महीन और मुलायम फाइबर है. ये फाइबर चांगथांगी बकरी से मिलता है , जो लद्दाख और हिमालय के ऊंचे, कड़कड़ाती ठंड वाले इलाकों में पाई जाती है. इन इलाकों का तापमान सर्दियों में -30°C तक पहुंच जाता है, इसलिए बकरियों के शरीर पर एक खास तरह का मुलायम अंदरूनी ऊन बनता है. यही असली पश्मीना है.
पश्मीना बनाने का लगभग हर काम हाथ से होता है. जैसे ऊन को साफ करना, धागा कातनात, शॉल बुनना, रंगाई करना और कढ़ाई. एक अच्छी क्वालिटी की शॉल बनाने में 3–4 महीने तक लग जाते हैं. इसलिए इसकी कीमत सिर्फ ऊन की वजह से नहीं, बल्कि कारीगर की महीनों की मेहनत से बनती है.
असली पश्मीना की शुरुआती कीमत लगभग 15,000 से 20,000 रुपये से शुरू होती है और कारीगरी जितनी बढ़ती है, कीमत लाखों रुपये तक पहुंच जाती है.
असली पश्मीना की मोटाई मात्र 12 से 16 माइक्रॉन होती है. यह इंसानी बाल से कई गुना पतला है. इतना महीन धागा संभालना और उससे शॉल बनाना एक बेहद मुश्किल और नाजुक कला है. इसी वजह से इसकी कीमत और बढ़ जाती है.
वहीं एक बकरी से साल में सिर्फ 80 से 150 ग्राम ही पश्मीना निकलता है. एक पूरी शॉल तैयार करने के लिए कई बकरियों से ऊन इकट्ठा करना पड़ता है यानी शुरुआत से ही इसको बनाना बहुत कम और बेहद कीमती होता है.
कई जगह बाजार में नकली पश्मीना बहुत मिलता है, इसलिए इसकी पहचान जरूरी है. असली पश्मीना की पहचान करने के लिए जलाने का टेस्ट करें. छूटे हुए धागे को जलाने पर जले बाल जैसी गंध आए तो असली है, वहीं प्लास्टिक जैसी गंध आए तो नकली है. असली पश्मीना इतना हल्का होता है कि पूरी शॉल अंगूठी के बीच से निकल जाती है.