Sleeper Cells Vs Spies: खुफिया एजेंसियों के जासूसों से कितने अलग होते हैं स्लीपर सेल, क्या इन्हें भी मिलती है सैलरी?
खुफिया एजेंट जिन्हें जासूस कहा जाता है सक्रिय कार्यकर्ता होते हैं. यह जानकारी को इकट्ठा करते हैं, संगठनों में घुसपैठ करते हैं और अपनी मूल एजेंसी को पूरी जानकारी देते रहते हैं. वहीं स्लीपर सेल एक निष्क्रिय इकाई होती है. वे सालों तक सोए रहते हैं बिना किसी प्रत्यक्ष गतिविधि में शामिल हुए और पूरी तरह से सामान्य जीवन जीते हैं. वे सिर्फ निर्देश मिलने पर ही सक्रिय होते हैं.
जासूसों को सीआईए, रॉ, आईएसआई या एमआई6 जैसी आधिकारिक खुफिया संस्थाओं द्वारा सीधे नियुक्त किया जाता है. जासूस अपने संचालकों के साथ नियमित संपर्क को बनाए रखते हैं. वहीं अगर स्लीपर सेल की बात करें तो वह अक्सर औपचारिक सरकारी एजेंसी के बजाय गुप्त नेटवर्क से जुड़े हुए होते हैं. उन्हें किसी भी ऑपरेशन से बहुत पहले ही स्थापित कर दिया जाता है और खुलासे से बचने के लिए संचार को पूरी तरह से काट दिया जाता है.
एक जासूस का जीवन लगातार सक्रिय रहता है. वे लगातार जानकारी कोई इकट्ठा करते रहते हैं, एन्क्रिप्टेड संदेश भेजते हैं, मुखबिरों से मिलते हैं और साथ ही झूठी पहचान के साथ काम करते हैं. वहीं स्लीपर सेल भूतों की तरह काम करते हैं. वें स्थिर नौकरियां करते हैं और आम नागरिकों की तरह ही रहते हैं.
खुफिया एजेंटों की औपचारिक रूप से उनकी संबंधित एजेंसी द्वारा ही भर्ती की जाती है. वे जासूसी, क्रिप्टोग्राफी, युद्ध और भेस बदलने में माहिर होते हैं. वहीं स्लीपर सेल का प्रशिक्षण मिशन विशिष्ट होता है. कुछ को नकली पहचान के तहत खास देश में भेजे जाने से पहले सालों तक प्रशिक्षित किया जाता है.
जासूसों को अपनी खुफिया एजेंसियों से गुप्त वित्तीय माध्यमों से नियमित वेतन, भत्ते और संचालन निधि मिलती रहती है. उनका वित्त पोषण राष्ट्रीय खुफिया बजट का ही एक हिस्सा होता है. लेकिन स्लीपर सेल को नियमित वेतन नहीं मिलता. उन्हें सिर्फ खास अभियानों के लिए एक मुश्त भुगतान मिल सकता है या फिर कोडेड नेटवर्क के जरिए से आपातकालीन निधि की व्यवस्था हो सकती है.
जासूस लगातार काम करते रहते हैं और राजनीतिक या फिर तकनीकी विकास पर रिपोर्टिंग करते रहते हैं. वहीं स्लीपर सेल अचानक से सक्रिय हो जाते हैं वह भी किसी बड़े मिशन को अंजाम देने के लिए.