सर्दियों में महासागरों पर दिखने वाला धुआं आता कहां से है? ये है इसके पीछे का विज्ञान
प्रकृति में पानी ठोस, द्रव्य और गैस के रूप में पाया जाता है. पानी के तीसरे रूप को हम सर्दियों में अपने वातावरण में आसानी से देख सकते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ठंड के दिनों में भी नदी और महासागरों का पानी फ्रीजिंग पॉइंट से ज्यादा ठंडा नहीं हो सकता है. यही कारण है कि महासागर की सतह उसके ऊपर की ठंडी हवा के मुकाबले हमेशा गर्म रहती है.
तापमान के इस अंतर के कारण महासागरों का पानी काफी मात्रा में भाप में बदल जाता है और उड़ने लगता है. दूर से देखने पर यह गैस के रूप में दिखाई देती है.
महासागर की गर्म सतह से पानी भाप बनकर ऊपर की ओर उड़ने लगता है. जब यह सतह के ऊपर की ठंडी हवा में मिलता है तो उस जगह की हवा में पानी की छोटी-छोटी बूंदें इकट्ठा हो जाती हैं.
सतह के ऊपर की हवा में मौजूद ये पानी की बूंदे सी-स्मोक कहलाती हैं. यही कारण है कि महासागरों या नदियों में पानी की ऊपरी सतह पर भाप हमें गैस के रूप में दिखाई देती है. इस तरह के सी-स्मोक आर्कटिक और एंटार्कटिक में बहुत देखने को मिलते हैं.
सतह से यह भाप इतना ऊपर उठ जाती है कि पानी के बड़े-बड़े जहाजों को चलाने में तो उतनी मुश्किल नहीं होती लेकिन नाव चलाने काफी दिक्कत होती है. सर्दियों में पानी की सतह पर दिखने वाली भाप को फ्रॉस्ट स्मोक या स्टीम फॉग भी कहा जाता है.