Qutub Minar: आखिर क्यों नहीं खुलते कुतुब मीनार के दरवाजे? जानिए रहस्य, इतिहास और सच्चाई
दरअसल, एक समय था जब पर्यटकों को कुतुब मीनार के भीतर जाने और उसकी संकरी सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने की अनुमति थी. वहां से लोग झरोखों के जरिए दिल्ली का खूबसूरत नजारा देखा करते थे.
लेकिन 4 दिसंबर 1981 का दिन इस परंपरा को हमेशा के लिए खत्म कर गया. उस दिन कुतुब मीनार में एक दर्दनाक हादसा हुआ, जिसने पूरे देश को हिला दिया.
रिपोर्ट्स के अनुसार, उस दिन अचानक मौसम खराब हो गया और बिजली व्यवस्था ठप पड़ गई. करीब 300 से ज्यादा लोग संकरी सीढ़ियों में मौजूद थे.
अंधेरे और अफरातफरी के बीच किसी ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर दी तो माहौल खराब हो गया. लड़की ने नीचे की ओर भागना शुरू किया तो अफवाह फैली कि मीनार गिरने वाली है.
इस अफरा-तफरी में सीढ़ियों पर भारी दबाव बढ़ा और लोग दरवाजे की तरफ धकेलते चले गए. दुर्भाग्य से दरवाजे अंदर की ओर खुलते थे, जिसके कारण बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया. झरोखों से आती हल्की रोशनी भी भीड़ के कारण ढक गई और स्थिति और भयावह हो गई.
कुछ देर में वहां ऐसी भगदड़ मची कि कई लोगों की जान चली गई. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस हादसे में लगभग 45 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें ज्यादातर स्कूल पिकनिक पर आए बच्चे थे. कई अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हुए.
यह घटना आज भी कुतुब मीनार के इतिहास का सबसे दुखद अध्याय मानी जाती है. इसी के बाद सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए कुतुब मीनार के दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए.