Nuclear Test: न्यूक्लियर टेस्ट के दौरान धमाके को कैसे कंट्रोल करते हैं साइंटिस्ट, इस दौरान किन चीजों की पड़ती है जरूरत
ज्यादातर आधुनिक परमाणु परीक्षण गहरी भूमिगत, सतह से 200 से 800 मीटर नीचे किए जाते हैं. इसके पीछे यह वजह होती है कि विस्फोट की ऊष्मा और दबाव चट्टानों की परतों के नीचे ही दबी रहे. अंडरग्राउंड टेस्ट रेडियोधर्मी गैसों और मलबे को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकता है.
किसी भी जगह को चुनने से पहले वैज्ञानिक आसपास के चट्टानों की मजबूती, डेंसिटी और संरचना के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण करते हैं. एक मजबूत और स्थिर संरचना ही शॉक वेव को अवशोषित कर सकती हैं और उन दरारों को रोक सकती है जिनसे रेडिएशन का रिसाव हो सकता है.
इसी के साथ एक बार जब परमाणु उपकरण सुरंग में गहराई तक चला जाता है तो बाकी जगह को स्टेमिंग प्रक्रिया द्वारा भरकर सील कर दिया जाता है. रेत, बजरी, जिप्सम और ठंडे टार जैसी चीजों को कई परतों में पैक किया जाता है. दर्शाए प्राकृतिक अवरोधों के रूप में काम करते हैं और रेडियोधर्मी गैसों और पिघले हुए मलबे को फंसा कर उन्हें सतह पर जाने से रोकते हैं.
परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि के तहत स्थापित निगरानी प्रणालियों के जरिए हर परमाणु परीक्षण का वैश्विक स्तर पर पता लगाया जाता है. भूकंपीय सेंसर द्वारा भूमिगत झटकों को रिकॉर्ड किया जाता है, रेडियोन्यूक्लाइड स्टेशन हवा में मौजूद रेडियोएक्टिव कणों का पता लगाते हैं और इसी के साथ हाइड्रोएकॉस्टिक उपकरण पानी के नीचे की तरंगों पर ध्यान रखते हैं.
विस्फोट के दौरान उस जगह के आसपास कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं होता. इस विस्फोट को कई किलोमीटर दूर स्थित एक नियंत्रण केंद्र से शुरू किया जाता है. वहां से कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करके संकेत भेजे जाते हैं जो परमाणु चार्ज को सक्रिय करते हैं.
एक सफल परीक्षण के लिए कई चीजों की जरूरत होती है. ड्रिलिंग मशीनें गहरी सुरंगों को खोदती हैं, सीसे से ढंके कंटेनर उपकरणों को रेडिएशन से बचते हैं और इसी के साथ डेटा सेंसर तापमान, दबाव और शॉक वेव को मापते रहते हैं. इस प्रक्रिया में बजरी, जिप्सम और कोलतार की परतें सुरंग को सील करने में काम आती हैं.