इस एंगल से चलाएंगे बल्ला तो हर बार लगेगा छक्का, धाकड़ बैटर्स के काम आएंगे ये टिप्स
आपका खेल सही तभी चलेगा जब आपकी बैटिंग की शुरुआत मजबूत होगी. इसके लिए सबसे पहले अपनी खड़े होने की पोजीशन तय करें यानी बैटिंग स्टांस. ऐसे में सामने वाला कंधा गेंदबाज की तरफ रखें. इसके बाद दोनों पैर कंधों जितनी दूरी पर रखें. अब घुटने थोड़े मुड़े हों ताकि शरीर लचीला रहे. बल्ला पैरों के पास जमीन पर टिकाएं और नजरें हमेशा गेंदबाज की तरफ हों. इसे ऑर्थोडॉक्स स्टांस कहते हैं. इससे आपको हर दिशा में शॉट खेलने की ताकत और संतुलन मिलता है.
क्रिकेट में सिर्फ बल्ला नहीं चलता, पूरा शरीर काम करता है. जब आप शॉट खेलने जाएं, तो शरीर को रिलैक्स रखें. इसके लिए पहले सामने वाला कंधा और फिर अगला पैर आगे बढ़ाएं. इसके बाद सिर हमेशा सीधा रहे और आँखें गेंद पर टिकी रहें. हाथ बहुत ज्यादा टाइट न हों, बस आराम से बल्ला पकड़ें. इससे आपका शॉट स्मूथ और शक्तिशाली बनता है.
बल्लेबाजी में पैर सबसे जरूरी भूमिका निभाते हैं. साथ ही सही जगह पैर रखने से ही आप गेंद तक पहुंचते हैं और बेहतरीन शॉट खेलते हैं. ऐसे में अगर गेंद आगे गिर रही है तो आगे बढ़ें और ड्राइव खेलें. अगर शॉर्ट गेंद है तो पीछे हटें और कट या पुल शॉट लगाएं. पैर का मूवमेंट आपको संतुलन और टाइमिंग देता है.
बैकलिफ्ट यानी बल्ले को पीछे ले जाने की क्रिया, यही असली शक्ति की शुरुआत होती है. जब बल्ला सही ऊंचाई से और सही टाइम पर पीछे जाएगा, तो आगे की स्विंग में जबरदस्त ताकत आएगी. बैकलिफ्ट सुधारने के लिए बैट को जोर से नहीं, सहजता से पीछे ले जाएं. किसी शीशे के सामने खड़े होकर प्रेक्टिस करें ताकि मूवमेंट सही दिखे. तेज मूवमेंट से बचें. स्विंग पूरी होनी चाहिए. जितनी साफ बैकलिफ्ट होगी, उतना तेज बल्ला गिरेगा और उतना ही दूर गेंद जाएगी.
गेंद पर नजर रखना सबसे बड़ा और जरूरी नियम है. आप चाहे किसी भी लेवल पर खेल रहे हों, अगर आपकी नजर गेंद पर नहीं है, तो शॉट मिस होना तय है. गेंदबाज के हाथ से गेंद निकलते ही उस पर ध्यान लगाएं, सिर स्थिर रखें, झुकाएं नहीं, गेंद के पिच होते ही तय करें कि शॉट कौन सा खेलना है. जैसे ड्राइव, डिफेंस या पुल.
कोई भी खिलाड़ी एकदम से महान नहीं बनता है. इसलिए . रोजाना प्रैक्टिस जरूरी है. अगर क्लब या कॉलेज में नेट है तो हफ्ते में 2 से 3 दिन जरूर जाएं. अगर नेट नहीं है तो घर के आंगन या गैरेज में प्रैक्टिस करें. एक दीवार पर गेंद मारकर रिफ्लेक्स ट्रेनिंग करें. अपने शॉट्स रिकॉर्ड करें और देखें कि कहां सुधार की जरूरत है. सिर्फ 20 मिनट रोज का प्रैक्टिस आपकी टाइमिंग और फुटवर्क में गजब का सुधार ला सकता है.