Animal Digestion: नाली का पानी से लेकर कचरा तक खा-पी जाते हैं जानवर, फिर इनका पेट क्यों नहीं खराब होता?
बाहर रहने वाले जानवरों का पाचन तंत्र काफी ज्यादा कठोर और खराब वातावरण में जीवित रहने के लिए विकसित होता है. उनके पेट सूक्ष्मजीवों, गंदगी और विषाक्त पदार्थों को सहन करने के लिए बने होते हैं. यह एक तरह से अंतर्निहित सुरक्षा की तरह काम करता है.
गाय, भैंस, बकरी और बाकी जुगाली करने वाले जानवरों के पेट रूमेन और रेटिकुलम जैसे खंडों में बंटे होते हैं. इनमें अरबों सूक्ष्मजीव होते हैं जो सेल्यूलोज, हानिकारक बैक्टीरिया और यहां तक की जहरीले प्लांट कंपाउंड्स को भी खत्म कर सकते हैं. खाना पेट के संवेदनशील भागों तक पहुंचने से पहले ही इस पूरी प्रक्रिया से गुजर चुका होता है.
कई जानवर मनुष्यों की तुलना में काफी ज्यादा शक्तिशाली स्टमक एसिड उत्पन्न करते हैं. उनके स्टमक एसिड कचरे या फिर सीवेज के पानी में पाए जाने वाले ई कोलीई, साल्मोनेला और बाकी रोगजनों को आसानी से नष्ट कर सकते हैं. यह एसिड जब भी दूषित भोजन को निकलते हैं एक प्राकृतिक कीटाणु नाशक के रूप में काम करता है.
जानवर रोज बैक्टीरिया, परजीवियों और जहरीले पदार्थ का सामना करते हैं. समय के साथ-साथ उनका इम्यून सिस्टम इन खतरों को पहचानने और उन्हें बेहतर करने के लिए मजबूत हो गया है.
जानवरों की आंतों में सूक्ष्मजीवों की एक घनी आबादी होती है जो अंगरक्षकों की तरह काम करती है. यह बैक्टीरिया हानिकारक बैक्टीरिया पर विजय प्राप्त करते हैं और पाचन में सहायक होते हैं और साथ ही उनकी आंत के अंदर एक जैविक ढाल के रूप में काम करते रहते हैं.
भले ही ऐसा लगे की जानवर कुछ भी खा रहे हैं फिर भी वे काफी ज्यादा विषैले पदार्थ से बचने के लिए सहज ज्ञान पर निर्भर रहते हैं. उनकी इंद्रियां खास करके गंध और स्वाद उन्हें यह चेतावनी देती है कि कोई भी चीज बहुत ज्यादा खराब या फिर हानिकारक है.