ट्रैक्टर के टायरों में पानी क्यों भरा जाता है, क्या इससे कुछ फायदा होता है?
बता दें कि ट्रैक्टर के टायरों में लगभग 60–80% तक पानी भरा जा सकता है. इसे प्रकिया को बैलैस्टिंग ऑफ़ टायर्स कहते हैं.
एक्सपर्ट के मुताबिक कई बार कर्षण हेतु भार बढ़ाने के लिए या किसी एग्रीकल्चरल मशीन के गुरुत्व केंद्र को जमीन के और करीब पहुंचाने के लिए टायरों में पानी भरा जाता है. पानी ट्यूब वाले और ट्यूबलैस दोनों ही प्रकार के टायरों में भरा जा सकता है.
बता दें कि एग्रीकल्चरल टायरों के वॉल्व “एयर और वॉटर टाइप” के होते हैं. इस पानी में कभी-कभी एंटीफ़्रीज़ भी मिलाया जाता है. क्योंकि ठंडे प्रदेशों में जहां तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है, वहां ग्लाइकॉल आधारित एंटीफ़्रीज़ का उपयोग करना ज़रूरी होता है.
वहीं एयर और वॉटर टाइप के वॉल्व इस प्रकार के होते हैं कि पानी भरते समय टायर के भीतर की हवा एक दूसरे छेद से निकल जाती है. वहीं ज़रूरी मात्रा में पानी भरने के बाद टायर में हवा का प्रेशर और कठोरता बनाने के लिए हवा भर दी जाती है.
किसानी से जुड़े लोग जानते होंगे कि ट्रैक्टरों को कभी-कभी पानी से भरे खेतों में काम करना पड़ता है. ऐसी जगहों पर जमीन बहुत फिसलन भरी हो जाती है. ऐसे में हवा भरे टायर जमीन पर फिसलने या एक ही स्थान पर घूमने लगते हैं.
बता दें कि ऐसी स्थिति में कर्षण को बढ़ाने के लिए टायर को बदले बिना उसके भार को बढ़ाना ज़रूरी हो जाता है. इस दौरान टायर के भार को या तो किसी भारी वजन को टायर के साथ बांधकर या टायर में पानी भरकर बढ़ाया जा सकता है.
वहीं टायर के साथ वजन को बांधना काफी कठिन काम है. इसलिए वॉटर बैलेस्टिंग अर्थात टायर में पानी भरना ही सही तरीका होता है. टायर में पानी भर देने से टायर का वजन पढ़ जाता है, जिससे कर्षण में वृद्धि होती है. वहीं कर्षण का सीधा संबंध घर्षण से है और घर्षण भार पर निर्भर करता है.