Jhulelal: झूलेलाल मछली पर क्यों बैठते हैं?
सिंधी हिंदुओं के बीच भगवान झूलेलाल की खास आस्था है, इन्हें सिंधी हिंदुओं का रक्षक माना जाता है. हालांकि किसी विशिष्ट पुराण में झूलेलाल का जिक्र नहीं मिलता, इन्हें केवल मान्यताओं के आधार पर पूजा जाता है. दरिया पंथ की स्थापना भी झूलेलाल ने की थी.
भगवान झूलेलाल का स्वरूप जल के देवता वरुण देव से काफी मिलता है. इसलिए इन्हें वरुण देव का मानव रूपी अवतार भी माना जाता है. भगवान झूलेलाल एक वृद्ध मानव रूप में मछली के ऊपर रखे कमल पर बैठे हुए नजर आते हैं. इनके एक हाथ में माला और दूसरे में अभय मुद्रा होती है. ये सिर पर मुकुट लगाए होते हैं.
भगवान झूलेलाल का स्वरूप जल के देवता वरुण देव से काफी मिलता है. इसलिए इन्हें वरुण देव का मानव रूपी अवतार भी माना जाता है. भगवान झूलेलाल एक वृद्ध मानव रूप में मछली के ऊपर रखे कमल पर बैठे हुए नजर आते हैं. इनके एक हाथ में माला और दूसरे में अभय मुद्रा होती है. ये सिर पर मुकुट लगाए होते हैं.
इसके संबंध में एक कथा प्रचलति है कि, सिंधी हिंदुओं को डरा-धमकाकर इस्लाम कबूल करवाया जा रहा था. मुगलों के इस अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए लोगों ने सिंधू नदी के किनारे पूजा-पाठ किए. लोगों की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान झूलेलाल नदी से प्रकट हुए.
झूलेलाल ने भक्तों से कहा कि, चैत्र सुदी दूज पर 40 दिन बाद वे जन्म लेंगे. सिंधुओं ने 40 दिनों तक वरुण देव की पूजा की और इसके बाद गांव के एक परिवार में वरुण देव के अवतार उदेरोलाल का जन्म हुए. जन्म लेते ही उदेरोलाल ने कई चमत्कार किए. सभी को उदेरोलाल में भगवान झूलेलाल की छवि दिखाई देने लगी. इसलिए उदेरोलाल का नाम झूलेलाल पड़ गया. इनका एक नाम उदयचंद भी है.
झूलेलाल ने जन्म लेकर लोगों को मुगल शासक मिरखशाह से अत्याचार से मुक्ति दिलाई. मिरखशाह ने भी झूलेलाल के आगे घुटने टेक दिए और उन्हें वचन दिया की हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म का सम्मान करेंगे.