Vikramaditya Singhasan: राजा विक्रमादित्य का सिंहासन कहां है
उज्जैन नगरी महाकाल के मंदिर के साथ ही चक्रवर्ती सम्राट विक्रामादित्य को लेकर भी प्रसिद्ध है. यहां विक्रमादित्य का दरबार लगता था और वे जिस सिंहासन पर बैठते थे, उसे सिंहासन बत्तीसी कहा जाता था. क्योंकि सिंहासन में 32 पुतलियां लगी थी.
विक्रमादित्य का सिंहासन रहस्यमयी था. कहा जाता है कि सिंहासन बत्तीसी में लगी 32 पुतलियां सजीव होकर न्याय देने में विक्रमादित्य की मदद करती थी. विक्रमादित्य का राज समाप्त होने के बाद सिंहासन भी गायब हो गया.
वर्षों बाद एक किसान की सहायता से यह सिंहासन राजा भोज को मिला. जोकि एक खेत के नीचे दबा था. सिंहासन के चारों ओर आठ-आठ यानी कुल 32 पुतलियां थीं. राजा भोज के आदेश पर सिंहासन को दुरुस्त कराया गया.
सिंहासन पर बैठने के लिए राजा भोज ने पंडित और ज्योतिषियों से शुभ मुहूर्त भी निकलवाया. दिन तय हो गया दूर-दूर से लोग पहुंचे. महल में गाजे-बाजे की रौनक थी. लेकिन राजा भोज विक्रमादित्य के सिंहासन का सुख नहीं भोग सके.
राजा भोज ने जैसे ही सिंहासन पर बैठने के लिए अपना दाहिना पांव आगे बढ़ाया, सिंहासन पर लगी बेजान पुतलियां बोलने लगी. पुतलियों ने राजा भोज से ऐसे कठिन सवाल पूछे, जिसका जवाब वे नहीं दे सके .
पुतलियों ने कहा, महाराज यह सिंहासन परम प्रतापी और ज्ञानी राजा विक्रमादित्य का है. इस तरह से एक-एक कर सभी 32 पुतलियों ने राजा भोज को विक्रमादित्य के महानता की कहानी सुनाई.