Mahashivratri 2025: कश्मीर में 'हेराथ' के नाम से प्रसिद्ध है महाशिवरात्रि, कैसे मनाते हैं ये उत्सव जानें
कश्मीर में महाशिवरात्रि भगवान शिव और पार्वती के विवाह के उत्सव को अंतिम माहवारी का पर्व हेराथ के नाम से जाना जाता है और इसकी मान्यता बिल्कुल अलग है. घाटी में पंडित समुदाय में यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है, महारात्रि के एक दिन पहले और ईसा के एक दिन बाद.
देश में जहां महाशिवरात्रि पर शिव और पार्वती की की उपासना होती है तो कश्मीरी पंडित इस की जगह भरवा-भारवि की पूजा करते है और बागवान को मांस-मच्छी का भोग लगते है और पूरी पूजा घर के अंदर ही होती है.
पूजा के पहले दिन की रात्रि की पूजा शिव-पार्वती के मिलन के साथ होती है. पूजा में दो मटको में पानी और पानी भर दिया जाता है शिव और शक्ति का प्रतीक माने जाने वाले इन्ही मटको की पूजा होती है.
ऐसे पास कई छोटे छोटे मटको को गणेश और अन्य देवी-देवताओं के प्रतीक तोर पर रखे जाते हैं. ईन मटको के झुरमुट को वटुक कहा जाता है और हेराथ पर हर हिंदू घर में एक वटुक का होना अनिवार्य होता है.
वटुक पूजा में भगवान को मांस दिया जाता है मच्छी का भोग लगाया जाता है. रोगन जोश, यखनी और शाकाहारी व्यंजन जैसे नदरू पालक, दम आलू आदि शामिल होते हैं. यह पूजा केवल कश्मीर घाटी में होती है.
मंदिर में पूजा शिवरात्रि के दिन ही होती है जिस में किसी शिव मंदिर में जाकर पूजा पाठ होता है और दर्शन किये जाते है. शिवरात्रि के अगले दिन की मान्यता है जिसे कश्मीर में सलाम कहा जाता है और इस दिन मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है.
इस पर्व का अंत दो दिन बाद अमावस्या के दिन होता है जब चावल और आटे से खट्टी रोटी बनाई जाती है और मटके में रखे खाने के साथ प्रसाद के तोर में रखा जाता है. और यह प्रसाद हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय में समानता से बांटा जाता रहा है.