Earthquake in Bangkok: म्यांमार में आए जोरदार भूकंप के झटकों से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में भारी तबाही मची. इस आपदा में अब तक 10 लोगों की मौत हो चुकी है, 16 लोग घायल हुए हैं और 101 लोग लापता हैं. थाईलैंड के आपदा रोकथाम और शमन विभाग (DDPM) के मुताबिक, बैंकॉक और दो अन्य प्रांतों को आपातकालीन आपदा क्षेत्र घोषित किया गया है. अधिकारी प्रभावित इलाकों में नुकसान का आकलन कर रहे हैं. DDPM के महानिदेशक फासाकॉर्न बूण्यालक ने बताया कि भूकंप से 14 प्रांतों में नुकसान हुआ है.

शुक्रवार को म्यांमार और थाईलैंड में आए भयंकर भूकंप से बचने वाले लोगों ने अपनी कहानी साझा की. उन्होंने उन डरावनी घटनाओं और मुश्किल हालात के बारे में बताया, जिनका उन्होंने सामना किया.

'मेरे लिए बुरे सपने के जैसा था'

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, बैंकॉक में रहने वाले 55 वर्षीय अकाउंट्स और टैक्स कंसल्टेंट एसके जैन शुक्रवार को एक मीटिंग के लिए सिलोम इलाके के ज्वेलरी ट्रेड सेंटर (JTC) गए थे. दोपहर 1:16 बजे, जब वे 59-मंजिला इमारत की 40वीं मंजिल पर पहुंचे, तो उन्होंने एक सहकर्मी को मैसेज किया कि वे बाद में लौटेंगे. लेकिन दो मिनट बाद ही पूरी इमारत हिलने लगी. श्री जैन ने याद करते हुए बताया कि वे भूकंप के दौरान ऊंची इमारत में फंस गए थे.

उन्होंने बताया, 'यह एक भयानक अनुभव था, मेरे जीवन का सबसे डरावना पल. मैं बहुत घबरा गया था. पहला झटका दोपहर 1:18 बजे महसूस हुआ. जिस कमरे में मैं था, वहां के पर्दे एक फुट से ज्यादा हिलने लगे. यह बहुत डरावना लग रहा था. हम सभी जल्दी से सीढ़ियों की ओर भागे. कुछ लोगों ने बताया कि वे बाहर भागते समय अपने आठ और 10 कैरेट के हीरे एक मेज पर छोड़ आए थे.'

उन्होंने आगे कहा, 'जब हम 21वीं मंजिल तक पहुंचे तो दूसरा झटका महसूस हुआ. उस समय हम 18वीं और 21वीं मंजिल के बीच थे. सीढ़ियां जोर-जोर से हिलने लगीं. मुझे उस समय हर भगवान की याद आ रही थी. मुझे लगा कि मैं बच नहीं पाऊंगा, लेकिन किसी तरह मैं 7.5 मिनट में 40 मंजिल नीचे पहुंच गया. मेरे साथ 1,500 से ज्यादा लोग भी नीचे आए. जल्दबाजी में कई लोग अपने फोन भी ऑफिस में छोड़ आए थे.'

'अपने पैरों पर नहीं खड़े हो पा रहे थे लोग'

56 वर्षीय शिखा रस्तोगी के साथ भी ऐसा ही हुआ. बैंकॉक के ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल में कार्यरत शिखा अपने सहकर्मियों के साथ 'द बिग ट्री' रेस्टोरेंट में लंच कर रही थीं, तभी भूकंप आ गया. उस समय वे अपने बीमार पति से फोन पर बात कर रही थीं, तभी झूमर तेजी से हिलने लगे. घबराकर रेस्टोरेंट में मौजूद सभी लोग बाहर भागने लगे. झटके इतने तेज थे कि कई लोग बिना सहारे के खड़े भी नहीं हो पा रहे थे. उनकी वैन दोपहर 1:30 बजे होटल से निकलीं, लेकिन ट्रैफिक इतना ज्यादा था कि उनके सहकर्मियों को घर पहुंचने में रात के 9:30 बज गए. हालांकि किस्मत से तीन घंटे में घर पहुंच गईं.

शिखा ने बताया, 'जब मैं घर पहुंची, तब मेरी इमारत बंद हो चुकी थी. पुलिस ने मुझे मेरे अपार्टमेंट की गली में घुसने नहीं दिया, जो मुख्य सड़क से एक किलोमीटर दूर थी. मुझे उन्हें समझाना पड़ा कि मैं वहीं रहती हूं और मुझे अपने बीमार पति के पास जाना है.' उन्होंने आगे कहा, 'जब मैं अंदर गई, तो मैंने अपने पति को ढूंढने की कोशिश की. चारों तरफ अंधेरा था, दुकानें बंद थीं, और मैं बहुत घबरा गई थी. फिर मैंने उन्हें एक खंभे के सहारे बैठे देखा.'