रूस पहले से ही उन देशों में शामिल है, जहां एचआईवी संक्रमण की दर विश्व में सबसे अधिक है. अब यूक्रेन युद्ध ने इस स्थिति को और भी भयावह बना दिया है. रिपोर्टों के अनुसार, युद्ध के शुरू होने के बाद से रूसी सैनिकों में एचआईवी संक्रमण की दर 20 से 40 गुना तक बढ़ गई है.

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इस वृद्धि के कई संभावित कारण हैं. सबसे पहले, युद्ध के तनावपूर्ण माहौल में सैनिकों की मानसिक स्थिति अत्यधिक दबाव में होती है. वे एक ऐसी मानसिकता में जी रहे हैं, जहां कल शायद न हो और यही सोच उन्हें असुरक्षित यौन संबंधों और नशे की ओर ले जाती है. रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि कुछ सैनिक ड्रग्स का इस्तेमाल एक ही सिरिंज से कर रहे हैं, जिससे संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

युद्ध क्षेत्र में स्वास्थ्य संसाधनों की कमी और लापरवाहीयूक्रेन सीमा पर स्थित रूसी सैन्य ठिकानों में स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है. कंडोम जैसे बुनियादी साधनों का नदारद होना, संक्रमित सैनिकों का बिना किसी सुरक्षा उपायों के फील्ड अस्पतालों में इलाज और नसबंदी ना होना, एचआईवी संक्रमण को तेजी से फैलाने में मददगार साबित हो रहे हैं.

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फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट में बताया गया कि कई संक्रमित सैनिक इमरजेंसी स्थिति में इलाज के लिए भर्ती किए जाते हैं, लेकिन समय की कमी और संसाधनों की कमी के चलते वहां सावधानी नहीं बरती जाती. इससे संक्रमण और तेजी से फैल रहा है. यह एक हेल्थकेयर इमरजेंसी की स्थिति को दर्शाता है जो युद्ध के साए में दब रही है.

जेलों से भर्ती किए जा रहे हैं HIV संक्रमित कैदी?रिपोर्टों में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है. रूस जेलों से सीधे सैनिकों की भर्ती कर रहा है, जिनमें कई HIV पॉजिटिव कैदी भी शामिल हैं. यह कदम सैन्य संख्या बढ़ाने के प्रयास में लिया गया हो सकता है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम गंभीर हो सकते हैं. यूक्रेनी अधिकारियों के अनुसार, रूसी सैनिकों में कम से कम 20% नए भर्ती एचआईवी पॉजिटिव हैं. इसका प्रभाव केवल सैन्य क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण हेल्थकेयर सिस्टम को प्रभावित करने की ताकत रखता है. युद्धकालीन रणनीति और मानवाधिकारों के बीच यह एक नया टकराव है.

जीवनरक्षक एंटी-वायरल दवाएं और उनकी सीमाएंकुछ रूसी सैनिकों ने खुलासा किया कि उन्हें HIV संक्रमण के बावजूद युद्ध के लिए तैयार होने पर एंटी-वायरल दवाएं दी जाती हैं. ये दवाएं बीमारी का इलाज नहीं करतीं, लेकिन वायरस के प्रभाव को कम करती हैं और शरीर की इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाती हैं. इससे अन्य बीमारियों से संक्रमित होने की संभावना घट जाती है. हालांकि, युद्ध क्षेत्र में इन दवाओं की लगातार सप्लाई रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है. संसाधनों की सीमितता और प्रशासनिक लापरवाही इस कोशिश को अधूरा छोड़ रही है.

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