Pakistan Lahore HC On Bhagat Singh: पाकिस्तान की एक अदालत ने स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को 1931 में सजा मिलने के मामले को दोबारा खोले जाने संबंधी याचिका पर शनिवार (16 सितंबर) को आपत्ति जताई. याचिका में भगत सिंह को मरणोपरांत राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का भी अनुरोध किया गया.


भगत सिंह को ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में मुकदमा चलाने के बाद 23 मार्च, 1931 को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई थी. भगत सिंह को शुरू में आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, लेकिन बाद में एक अन्य मनगढ़ंत मामले में मौत की सजा सुनाई गई.


भगत सिंह मामले को फिर से खोलने की बात
लाहौर हाई कोर्ट ने शनिवार (16 सितंबर) को लगभग एक दशक पहले दायर हुए मामले को फिर से खोलने और उस याचिका पर सुनवाई के लिए वकीलों की बेंच के गठन पर आपत्ति जताई, जिसमें समीक्षा के सिद्धांतों का पालन करते हुए सिंह की सजा को रद्द करने का अनुरोध किया गया है.


भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष और याचिकाकर्ता वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने कहा, ‘‘लाहौर हाई कोर्ट ने शनिवार को भगत सिंह मामले को फिर से खोलने और इसकी शीघ्र सुनवाई के लिए एक वकीलों की बेंच के गठन पर आपत्ति जताई. अदालत ने आपत्ति जताई कि याचिका वकीलों की बेंच के सुनवाई योग्य नहीं है.’’


कुरैशी ने कहा कि वरिष्ठ वकीलों की एक समिति की यह याचिका एक दशक से हाई कोर्ट में लंबित है. उन्होंने कहा, ‘‘जज शुजात अली खान ने 2013 में एक बड़ी बेंच के गठन के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा था, तब से यह लंबित है.’’


भगत सिंह ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी
लाहौर हाई कोर्ट की याचिका में कहा गया है कि भगत सिंह ने उपमहाद्वीप की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी. इसमें कहा गया है कि भगत सिंह का उपमहाद्वीप में न केवल सिखों और हिंदुओं, बल्कि मुसलमानों की तरफ से भी सम्मान किया जाता है. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने सेंट्रल असेंबली में अपने भाषण के दौरान दो बार सिंह को श्रद्धांजलि दी थी.


कुरैशी ने दलील दी, ‘‘यह राष्ट्रीय महत्व का मामला है और इसे पूर्ण पीठ के समक्ष तय किया जाना चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी. सैंडर्स की हत्या की प्राथमिकी में भगत सिंह का नाम नहीं था, जिसके लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी.


लाहौर पुलिस ने अनारकली थाने के रिकॉर्ड खंगाले
करीब एक दशक पहले कोर्ट के आदेश पर लाहौर पुलिस ने अनारकली थाने के रिकॉर्ड खंगाले थे और सैंडर्स की हत्या की प्राथमिकी ढूंढने में कामयाबी हासिल की थी. उर्दू में लिखी यह प्राथमिकी 17 दिसंबर, 1928 को शाम साढ़े चार बजे दो ‘अज्ञात बंदूकधारियों’ के खिलाफ अनारकली पुलिस थाने में दर्ज की गई थी.


कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह का मामला देख रहे विशेष न्यायाधीशों ने मामले में 450 गवाहों को सुने बिना ही उन्हें मौत की सजा सुना दी. उन्होंने कहा कि सिंह के वकीलों को जिरह करने का मौका तक नहीं दिया गया था.


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