खैबर पख्तूनख्वा के हालातों पर पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने चिंता जताई है. उनका कहना है कि इस साल पूरे देश में हमलों की जितनी घटनाएं सामने आई हैं, उनमें से एक-तिहाई सिर्फ खैबर पख्तूनख्वा में हुए हैं. एचआरसीपी ने चिंता जताई है कि जिस तरह से प्रांत के हालात हैं, उसकी वजह से वहां रहने वाले लोगों के मन में किस तरह का डर समाया हुआ है.

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पाकिस्तानी मीडिया द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, एचआरसीपी का कहना है कि खैबर पख्तूनख्वा में जितने हमले हुए हैं, उनमें मुख्य रूप से सुरक्षा बलों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निशाना बनाया गया. वहीं पाकिस्तानी मीडिया ने इस रिपोर्ट को हेडलाइन 'क्रॉसफायर में फंसे' के साथ पब्लिश किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा का केंद्र विलय किए गए जिले थे. यहां रहने वाले लोग असुरक्षा, जबरन विस्थापन और न्याय तक सीमित पहुंच जैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार एचआरसीपी ने खुलासा किया है कि वहां रहने वाले प्रभावित समुदाय के लोगों का कहना है कि लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा रहा है, कार्रवाई (नागरिक शक्ति की सहायता में) अध्यादेश, 2019 के तहत स्थापित नजरबंदी केंद्र अभी भी चल रहे हैं और जबरन गायब होने की घटनाएं लगातार हो रही हैं. 

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रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि यहां की स्थिति को उजागर करने के लिए रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार भी सुरक्षित नहीं हैं. पत्रकारों को सेंसरशिप, धमकियों और लक्षित हमलों का सामना करना पड़ता है. आदिवासी बुजुर्गों, राजनीतिक समर्थकों और शांति के पैरोकारों को भी हमलों का सामना करना पड़ रहा है. इससे लोगों में असुरक्षा और अविश्वास की गहरी भावना पैदा हुई है.

बीते कुछ समय से लगातार इस तरह की खबरें मीडिया में आ रही हैं कि खैबर पख्तूनख्वा में रहने वाले परिवार से लोगों को जबरन पुलिस या सेना उठाकर ले जाते हैं और फिर वो लापता हो जाते हैं या उनकी हत्या कर दी जाती है.