Pakistan Election: पाकिस्तान में चुनाव हो रहे हैं, लेकिन नतीजे सभी को मालूम हैं. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि पाकिस्तान का राजनीतिक इतिहास ही कुछ ऐसा है. भले ही किसी भी पार्टी को जीत मिली, लेकिन जीतने वाला उम्मीदवार पाकिस्तानी सेना का भरोसमंद व्यक्ति ही होता है. पाकिस्तानी सेना जिस शख्स को चाहती है, उसे चुनाव में जीत दिलवाकर प्रधानमंत्री बनवाती है. इस बार पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अपना दांव नवाज शरीफ पर लगाया गया है. 


राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा चल रही है कि नवाज शरीफ की 'पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज' (पीएमएल-एन) चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है. इसके साथ ही इस बार सेना ने नवाज शरीफ पर भरोसा जताया है. पिछली बार सेना ने इमरान को 'सिलेक्ट' करवाया, लेकिन अपने कार्यकाल के मध्य में ही उन्होंने बगवात कर दी. इसका नतीजा ये हुआ कि उन्हें पीएम पद गंवाना पड़ा. इमरान ने खुद सेना पर उन्हें सत्ता से बेदखल करने का आरोप लगाया था. 


राजनीति में हस्तक्षेप का लंबा इतिहास


दरअसल, 1947 में अस्तित्व में आने के बाद से पाकिस्तान की सेना ने देश में तीन बार मार्शल लॉ लागू किया है. सात दशक में तीन दशक से ज्यादा समय पाकिस्तान पर सेना का राज रहा है. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि बाकी के चार दशक भले ही जनता से चुना सरकार सत्ता तक पहुंची. मगर पर्दे के पीछे से प्रधानमंत्री को प्यादे की तरह इस्तेमाल करने का काम पाकिस्तानी सेना करती रही है. वो उन उम्मीदवारों को आगे करती रही है, जो सेना के प्रति वफादार रहे हैं. 


1958 में, पाकिस्तान ने अपना पहला सैन्य तख्तापलट देखा जब जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा से पद छीन लिया. आधिकारिक तौर पर भले ही मार्शल लॉ 44 महीने तक चला. मगर जनरल याह्या खान को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने के बाद ही अयूब खान ने 1969 में अपना पद छोड़ा. इसके बाद याह्या खान 1971 तक इस पद पर बने रहे. 1971 का युद्ध भारत से हारने के बाद याह्या खान ने इस्तीफा दे दिया. जुल्फिकार अली भुट्टो को राष्ट्रपति पद सौंपा गया.


जुलाई 1977 में जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू किया, जो 1988 तक चलता रहा. इस बीच 1985 में चुनाव हुए और मोहम्मद खान जुनेजो भले ही प्रधानमंत्री बने, मगर जिया ही राष्ट्रपति को तौर पर पर्दे के पीछे से सरकार चलाते रहे. इसके बाद 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट कर नवाज शरीफ को सत्ता से बाहर किया और 2008 तक पाकिस्तान पर शासन चलाते रहे. यही वजह है कि एक बार फिर से सेना के ही सत्ता में लौटने की बात हो रही है.


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