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Mughal Emperor Aurangzeb: औरंगजेब के दरबार में किस धर्म के कितने लोग थे? पहले और दूसरे कार्यकाल का डेटा देखिए

औरंगजेब मुगल साम्राज्य का एक प्रमुख और विवादित शासक था. उसकी नीतियों और शासन ने भारत के इतिहास में गहरा प्रभाव डाला.

Mughal Emperor Aurangzeb Court: औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को मुगल शासक शाहजहां और मुमताज महल के पुत्र के रूप में हुआ था. उसका पूरा नाम मुईनुद्दीन मुहम्मद औरंगजेब आलमगीर था. बचपन से ही औरंगजेब ने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की और इस्लामी कानून में गहरी रुचि दिखाई. वह अरबी और फारसी भाषाओं में निपुण था और अपने धार्मिक विश्वासों के प्रति अत्यंत समर्पित था. शुरुआती दिनों से ही औरंगजेब ने मुगलों की सेना और राजनीति में गहरी रुचि दिखाई, और अपने पिता शाहजहां के अधीन रहकर कई महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया.

औरंगजेब ने 1658 में अपने पिता शाहजहां को सत्ता से बेदखल कर मुगल साम्राज्य की गद्दी संभाली. वह अपने भाइयों दारा शिकोह, मुराद और शुजा के खिलाफ सत्ता संघर्ष में विजयी हुआ. सम्राट बनने के बाद औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य का विस्तार करने और इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार शासन करने की नीति अपनाई. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के मध्यकालीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर अखिलेश जायसवाल ने अपनी किताब ‘औरंगजेब और हिंदुओं के साथ संबंध’ में कुछ आंकड़े दिए हैं. आंकड़ों के मुताबिक औरंगजेब के दरबार में कई देश और धर्म के लोग रहते थे. अगर बात करें धर्म की तो उसके पहले कार्यकाल (1658-1678) के दौरान दरबार में कुल 486 लोग थे. इसमें में सबसे ज्यादा 381 लोग मुसलमान थे. बाकी के लोग हिंदू थे, जिनमे राजदूत, मराठा और अन्य हिंदू मिलाकर 105 लोग थे.

औरंगजेब के दूसरे कार्यकाल में इजाफा
औरंगजेब के दूसरे कार्यकाल (1679-1707) के दौरान दरबार में कुल 575 लोग मौजूद थे. ये संख्या पिछले कार्यकाल से 89 ज्यादा थे. पिछले कार्यकाल में कुल 486 लोग थे वहीं दूसरे में 575. औरंगजेब के दूसरे कार्यकाल में भी मुसलमानों की संख्या ज्यादा थी. ये आंकड़ा 393 था, जबकि पिछले कार्यकाल में 381 थे. मुसलमानों के अलावा हिंदुओं की संख्या में इजाफा देखने को मिला. (1679-1707) के कार्यकाल के दौरान औरंगजेब के दरबार में हिंदुओं की संख्या 182 थी, जो पिछली संख्या से 77 ज्यादा थी.

औरंगजेब की नीतियों को उसके धार्मिक दृष्टिकोण से गहरे प्रभावित माना जाता है. उसने इस्लामी कानून "शरीयत" को शासन का आधार बनाया और जज़िया (गैर-मुसलमानों पर कर) को पुनः लागू किया. इसके अलावा, उसने संगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया, जो पहले के मुगल शासकों के शासन में प्रचलित थीं. इन नीतियों ने उसे हिंदू और अन्य गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच एक विवादास्पद शासक बना दिया.

धार्मिक विवाद और औरंगजेब की आलोचना
औरंगजेब को उसके धार्मिक नीतियों के कारण अक्सर आलोचना का सामना करना पड़ा है. उसने हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने और जबरन धर्मांतरण को बढ़ावा देने के आरोपों के चलते एक विवादित शासक के रूप में पहचान बनाई. उसकी धार्मिक नीतियों ने मुगल साम्राज्य के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया और कई राजपूत और हिंदू शासकों के साथ उसके संबंध खराब हो गए. हालांकि, औरंगजेब के शासनकाल में साम्राज्य ने विस्तार किया, लेकिन उसके अंत में राजनीतिक अस्थिरता और बगावतों ने मुगल साम्राज्य को कमजोर कर दिया.

औरंगजेब की मृत्यु और उसकी विरासत
औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को हुई. वह लगभग 50 वर्षों तक भारत पर शासन करता रहा, जो मुगल इतिहास का सबसे लंबा शासनकाल था. उसकी मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया. आज भी उसे एक धार्मिक कट्टरपंथी और सख्त शासक के रूप में याद किया जाता है.

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