कोलंबो: श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे आज एक ऐतिहासिक बौद्ध विहार में देश के प्रधानमंत्री के रूप में चौथी बार शपथ लेंगे. एक आधिकारिक बयान के मुताबिक श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) के 74 वर्षीय नेता महिंदा राजपक्षे उत्तरी कोलंबो के उपनगर केलानिया में स्थित राजमहा विहार में नौवीं संसद के लिये शपथ ग्रहण करेंगे. उन्हें पांच लाख से अधिक वैयक्तिक प्राथमिकता वोट मिले, जो देश के चुनावी इतिहास में सर्वाधिक हैं.

एसएलपीपी ने आम चुनाव में दो-तिहाई बहुमत हासिल कर शानदार जीत दर्ज की महिंदा नीत एसएलपीपी ने आम चुनाव में दो-तिहाई बहुमत हासिल कर शानदार जीत दर्ज की. सत्ता पर राजपक्षे परिवार की पकड़ और मजबूत करने को लेकर संविधान संशोधन के लिये यह बहुमत महत्वपूर्ण साबित होगा. पार्टी ने 145 सीटों पर और सहयोगी दलों के साथ कुल 150 सीटों पर जीत हासिल की है, जो 225 सदस्यीय संसद में दो-तिहाई है. 68 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया और मतदान प्रतिशत 59.9 रहा था.

नया मंत्रिमंडल सोमवार को शपथ ग्रहण करेगा डेली मिरर समाचारपत्र के मुताबिक, नया मंत्रिमंडल सोमवार को शपथ ग्रहण करेगा, इसके बाद राज्य एवं उप मंत्री शपथ ग्रहण करेंगे. नव निर्वाचित सरकार ने मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 26 सीमित रखने का निर्णय किया है, हालांकि 19 वें संविधान संशोधन के प्रावधानों के तहत इसे बढ़ा कर 30 किया जा सकता है.

राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की राजनीति पर दो दशक से वर्चस्व राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की राजनीति पर दो दशक से वर्चस्व है. इसमें एसएलपीपी संस्थापक एवं इसके राष्ट्रीय संयोजक बासिल राजपक्षे, जो राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के छोटे भाई और महिंदा से बड़े हैं, भी शामिल हैं. महिंदा 2005 से 2015 के बीच करीब एक दशक तक राष्ट्रपति रह चुके हैं.

राष्ट्रपि गोटाबाया ने एसएलपीपी के टिकट पर नवंबर का राष्ट्रपति चुनाव जीता था. संसदीय चुनाव में उन्हें 150 सीटों की जरूरत थी जो संवैधानिक बदलावों के लिये जरूरी है. इनमें संविधान का 19 वां संशोधन भी शामिल है जिसने संसद की भूमिका मजबूत करते हुए राष्ट्रपति की शक्तियों पर नियंत्रण लगा रखा है. संविधान में संशोधन की संभावनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एसएलपीपी अध्यक्ष जी एल पेइरिस ने कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद इसे किया जाएगा.

यूनाटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को लगा बड़ा झटका संसदीय चुनाव में सबसे बड़ा झटका पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को लगा है, जो सिर्फ एक सीट ही जीत सकी. देश की सबसे पुरानी पार्टी 22 जिलों में एक भी सीट जीत पाने में नाकाम रही. चार बार प्रधानमंत्री रहे इसके नेता को 1977 के बाद से पहली बार शिकस्त का सामना करना पड़ा है.

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