अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब मई में अपनी पहली विदेश यात्रा पर निकलेंगे, तो उनका रुख किसी पश्चिमी देश या एशियाई शक्ति जैसे भारत, चीन या रूस की ओर नहीं बल्कि एक इस्लामिक देश सऊदी अरब की ओर होगा.

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यह फैसला खुद में कई सवाल उठाता है, क्योंकि आमतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति अपनी पहली यात्रा के लिए ऐसे देशों को चुनते हैं, जो उनके रणनीतिक और आर्थिक गठबंधन में अहम भूमिका निभाते हैं. लेकिन ट्रंप ने सऊदी अरब को अपनी प्राथमिकता क्यों दी? क्या यह सिर्फ एक कूटनीतिक कदम है, या फिर यह अमेरिका और खाड़ी देशों के बीच बढ़ते रिश्तों का संकेत है?

पहली बार भी सऊदी अरब में बने थे मेहमान

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ट्रंप की पिछली कार्यकाल में भी उनकी पहली विदेश यात्रा सऊदी अरब ही थी. अब एक बार फिर उन्होंने सऊदी अरब को अपनी यात्रा के लिए चुना है, जहां वह खाड़ी देशों के साथ रिश्ते मजबूत करने की कोशिश करेंगे.

व्हाइट हाउस के अधिकारियों का कहना है कि इस यात्रा में मुख्य रूप से विदेशी निवेश, खाड़ी देशों के साथ संबंधों को और गहरा करना और मध्य पूर्व में शांति स्थापना पर चर्चा की जाएगी. हाल ही में हुए एक उच्च स्तरीय संवाद में अमेरिकी और सऊदी अधिकारियों के बीच इस यात्रा पर चर्चा की गई थी और यह यात्रा यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा का हिस्सा रही है.

ट्रंप ने क्या कहा था सऊदी यात्रा के बारे में?ट्रंप ने अपनी सऊदी अरब यात्रा को लेकर 6 मार्च को व्हाइट हाउस में कहा था, "मैं सऊदी अरब जा रहा हूं. पिछली बार उन्होंने 450 अरब डॉलर का निवेश किया था. इस बार मैंने उनसे कहा कि इस यात्रा के लिए वह अमेरिकी कंपनियों के लिए चार साल में एक ट्रिलियन डॉलर का निवेश करें. उन्होंने इस पर सहमति दी है, इसलिए मैं वहां जाऊंगा."

खाड़ी देशों से रिश्तों को और मजबूत करना उद्देश्यइस यात्रा के जरिए ट्रंप एक बार फिर से खाड़ी देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने की कोशिश करेंगे. हालांकि, इज़राइल और सऊदी अरब के बीच रिश्तों की सामान्यीकरण की योजना फिलहाल 'बैक बर्नर' पर है, क्योंकि रियाद का कहना है कि इस योजना में फिलीस्तीनी राज्य की स्थापना को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

कूटनीतिक जीत साबित हो सकती है यात्रासऊदी अरब की यात्रा ट्रंप के लिए सिर्फ एक राजनयिक यात्रा नहीं, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक मामलों में भी अहम मानी जा रही है.सऊदी अरब के साथ उनके रिश्ते फिर से मजबूती की दिशा में बढ़ सकते हैं, और यह अमेरिका के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हो सकती है.