पाकिस्तान के आर्थिक हालात बिगड़ते जा रहे हैं. पिछले कुछ दिनों में इस देश ने ना सिर्फ खुद को आर्थिक मोर्चे पर बेबस पाया है बल्कि वर्तमान में राजनीतिक अस्थिरता से भी गुजर रहा है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि कभी भारत के प्रति नफरती तेवर रखने वाले पाकिस्तान ने अब अपने तेवर को नरम कर दिया है.


दरअसल पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने हाल ही में भारत को लेकर एक बयान दिया है, वह उनकी सरकार के पिछले कड़वे बयानों से काफी अलग है.    


पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने अल अरबिया को दिए एक इंटरव्यू में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हर समस्या पर बातचीत के लिए तैयार होने की बात कही है. शाहबाज शरीफ ने उस इंटरव्यू में कहा, 'भारतीय नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करता हूं कि हमें बातचीत के मेज पर बैठकर हर मुद्दे को हल करने की कोशिश करनी चाहिए.'


शहबाज शरीफ ने आगे कहा, 'भारत के साथ तीन युद्ध लड़ चुके हैं और यह हर बार और कंगाली, गरीबी और लोगों के लिए बेरोजगारी लाया है. हम अपना सबक सीख चुके हैं और हम शांति से रहना चाहते हैं.'


पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी की शांति की बात


पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के बयान से कुछ दिन पहले ही यहां के विदेश मंत्रालय की ओर से शांति पर अमल लाने की बात कही गई थी. हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा था, 'पाकिस्तान भारत के साथ मुद्दे सुलझाना चाहता है. लेकिन भारत भी इसे गंभीरता से ले.' 


जाहिर है पाकिस्तान के पीएम और विदेश मंत्रालय के इस तरह के बयान ने एक बार भारत पाकिस्तान के रिश्ते को हाईलाइट कर दिया है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान वाकई अपने ऐसे हालात से सबक ले चुका है? क्या पाकिस्तान सच में शांति चाहता है? 


क्या कहते हैं विशेषज्ञ 


एबीपी न्यूज़ से बातचीत में पूर्व राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जानकार विवेक काटजू कहते हैं, ' पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ वैसे तो गंभीर नेता हैं. उन्हें समझ आ रहा है कि अगर पाकिस्तान को इस स्थिति और देश में खराब हो रही आर्थिक स्थिति से उबारना है तो भारत के साथ शांति जरूरी है.


हालांकि हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि शहबाज पाकिस्तान में गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. ऐसे शांति स्थापित करने वाले उस बयान में क्या पीपीपी और मौलाना फजलुर्रहमान उनके साथ हैं? 


उन्होंने कहा, 'ये समस्या छोटी सी है, फिलहाल देश की सबसे बड़ी समस्या सेना है. पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ असीम मुनीर ने अब तक इस मामले में अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है.'


काटजू ने आगे कहा, 'पाकिस्तान में ये सभी जानते हैं कि पाकिस्तान की भारत नीति इस्लामाबाद में नहीं बल्कि रावलपिंडी (सेना मुख्यालय) में बनती है. शहबाज के उस बयान को गंभीरता से तब लिया जाएगा जब पाकिस्तान आर्मी चीफ असीम मुनीर फोन उठाएं और भारतीय आर्मी चीफ से बात करें और कहें कि अब शांति से रहना चाहिए. लेकिन वे तो ऐसा नहीं कर रहे हैं.'


क्या कहते हैं पाकिस्तान पत्रकार 


इस बयान को लेकर एबीपी न्यूज से पाकिस्तानी पत्रकार और विश्लेषक नुसरत मिर्जा ने भी बातचीत की. उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान के आर्मी का भी यही रुख है. उनका मानना है कि नवाज शरीफ की पोती की शादी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शरीक होंगे. मिर्जा ने कहा कि शरीफ परिवार हमेशा से भारत के साथ अच्छे रिश्ते चाहता है.


समझिये इस बयान के पीछे की राजनीति 


दरअसल वर्तमान में जो पाकिस्तान के हालात है उससे इस देश को ये तो समझ आ रहा है कि कश्मीर पर वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति बहुत कमजोर हो चुकी है. पाकिस्तान का हर मुद्दे पर साथ देने वाले दो देश सऊदी अरब और यूएई का भारत के साथ कारोबार इस स्तर पर बढ़ गया है कि ये तो साफ है कि कश्मीर के मुद्दे पर वह पाकिस्तान का साथ नहीं देंगे.


इसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज का यूएई दौरा रहा. इस दौरे में दोनों देशों के साझा बयान में कश्मीर का कोई जिक्र नहीं किया गया.


पाकिस्तान की एक प्रमुख वेबसाइट एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार यह देश पिछले कुछ महीनों से चौतरफा परेशानी से घिरा हुआ है. महंगाई, कर्ज और बेरोजगारी ने ना सिर्फ जनता को बल्कि अब सरकारों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है. ऐसे में पाकिस्तान को कश्मीर को छोड़कर अपनी आर्थिक स्थिति पर ध्यान देना चाहिए. 


इसी आर्टिकल के अनुसार भारत पहले कश्मीर को विवादित मुद्दा तो मानता था लेकिन वह इस मुद्दे पर बिल्कुल चर्चा ही नहीं करता है. लेख में कहा गया है कि अमेरिका से भारत की नजदीकियों को कारण भारत कश्मीर को लेकर और सख्त रुख अपना रहा है.


भारत से दरियादिली की उम्मीद में पाकिस्तान!   


पाकिस्तान की जो हालत है उसे देखते वह भारत से दरियादिली की उम्मीद भी कर रहा है. भारत अपने सभी पड़ोसी देशों की मदद करता है. चाहे वह कोरोना के वक्त हो या श्रीलंका संकट के वक्त. भारत अपने पड़ोसी देशों का साथ कई बार निभा कर ये साबित कर चुका है कि अगर पाकिस्तान से भारत के अच्छे रिश्ते होते तो जरूर मदद का हाथ भी बढ़ाया जाता. 


पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार के आर्टिकल में लिखा था कि पाकिस्तान की आम जनता भी अपने पड़ोसी देश यानी भारत के  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर सराहना कर रहे हैं.


पुराने मित्र पाकिस्तान से काट रहे हैं कन्नी


पाकिस्तान के पुराने मित्र भी इस वक्त इस देश से अपना पीछा छुड़ाने की जुगत में हैं. एक तरफ जहां अमेरिका भी पाकिस्तान की मदद करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहा है. वहीं दूसरी तरफ सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और चीन जैसे मित्र देशों से भी पाकिस्तान को तत्काल सहायता नहीं मिल पा रहा है. 


पाकिस्तान के जितने भी मित्र देश हैं वह इस वक्त यहां के अंदरूनी हालात को देखते हुए सोच-समझकर आर्थिक मदद पर कोई फैसला ले रहे हैं.  पाकिस्तान का कर्ज चुकाने का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है जिसे ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) भी मदद करने से पीछे हट रहा है. ऐसे में पाकिस्तान को उम्मीद है कि भारत के साथ अगर रिश्तों में सुधार आता है तो भारत उनकी मदद करने के लिए जरूर आगे आएगा.