China Deploys Troops At Larung Gar: लारुंग गार बौद्ध अकादमी दुनिया के सबसे बड़े तिब्बती बौद्ध अध्ययन केंद्रों में गिना जाता है, हाल ही में वहां चीनी सैन्यकर्मियों में काफी बढ़ोतरी देखी गई है. केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) की रिपोर्ट के मुताबिक, सेरथर काउंटी में स्थित इस अकादमी में चीन ने लगभग 400 सैनिकों और कई हेलिकॉप्टरों को तैनात किया है.
यह कदम तिब्बती बौद्ध शिक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता पर राज्य के बढ़ते हस्तक्षेप का प्रमाण है. लारुंग गार को चीनी सरकार लंबे समय से निशाना बना रही है, जिससे इसके शैक्षणिक और धार्मिक महत्व को गहरा आघात पहुंचा है.
नए नियमों के साथ धार्मिक स्वतंत्रता पर रोक2025 तक लागू किए जाने वाले चीनी नियम तिब्बती भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए बड़े बदलाव ला सकते हैं. इन नियमों में अकादमी में रहने की अवधि 15 वर्षों तक सीमित करना, सभी धार्मिक शिक्षकों का अनिवार्य पंजीकरण और भिक्षुओं की संख्या में कटौती जैसे प्रावधान शामिल हैं. इसके अलावा, चीनी छात्रों को अकादमी छोड़ने के लिए निर्देशित किया जा रहा है. इन उपायों का उद्देश्य धार्मिक गतिविधियों को सीमित करना और चीनी नीतियों के अनुरूप बनाना है.
अकादमी की आधी रह गई आबादी1980 में स्थापित, लारुंग गार ने तिब्बती बौद्ध धर्म की शिक्षा और अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह अकादमी तिब्बत और दुनिया भर के हजारों भिक्षुओं और भिक्षुणियों को आकर्षित करती रही है. हालांकि, 2001 और 2016-2017 के बीच की चीनी कार्रवाइयों ने इसकी स्ट्रक्चरल और शैक्षणिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया था. हजारों रेजिडेंशियल स्ट्रक्चर को ध्वस्त किया गया और बड़ी संख्या में धार्मिक चिकित्सकों को बेदखल कर दिया गया. जिसके कारण अकादमी की आबादी 10,000 से घटकर आधी रह गई.
उइगर मुस्लिमों पर चीन का जुल्म
चीन पर उइगर मुसलमानों पर अत्याचार करने के आरोप लगते रहे हैं. शिनजियांग प्रांत में रह रहे उइगर मुसलमानों पर चीन कई बार अत्याचार किया है, 10 लाख से ज्यादा लोगों को 'रि-एजुकेशन कैम्प' में हिरासत में रखा गया था. इन कैंप्स में यातना, जबरन श्रम और मानसिक उत्पीड़न की रिपोर्टें सामने आई थी. शिनजियांग में इस्लामी प्रथाओं पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए थे, जैसे मस्जिदों में नमाज अदा करना, धार्मिक पहनावा धारण करना और रोजा रखना.
तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता पर बीजिंग की रणनीतिचीन तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता को सख्ती से नियंत्रित करने का लगातार प्रयास कर रहा है. चीनी सरकार का दावा है कि तिब्बत उसके क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा है, जबकि तिब्बतियों का एक बड़ा वर्ग और स्वतंत्रता की मांग कर रहा है. यह विवाद 1959 में दलाई लामा के निर्वासन और तिब्बत में विद्रोह के बाद से एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है.