चीन तिब्बत क्षेत्र में यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे शक्तिशाली हाइड्रोपावर डैम बना रहा है. बीजिंग का कहना है कि वह इसके जरिए सिर्फ एनर्जी सप्लाई बढ़ाना चाहता है, लेकिन इसे लेकर कई आशंकाएं भी सामने आ रही हैं. तिब्बत की यारलुंग त्सांगपो नदी को भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है. आगे चलकर यह नदी बांग्लादेश में जमुना कहलाती है. उसी के निचले हिस्से में चीन 68 अरब डॉलर का दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध का निर्माण कर रहा है.

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चीन के 'वॉटर बम' पर भारत की नजर

भारत और बांग्लादेश के लाखों लोग इस नदी पर निर्भर हैं. इस प्रोजेक्ट में पारदर्शिता की कमी और पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की आशंकाओं पर भारत ने चिंता जताई है. इस बांध के निर्माण पर भारत करीब से नजर रख रहा है.

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सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक तैयार होने के बाद यह डैम थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुना अधिक शक्तिशाली होगा, जो चीन में ही स्थित है. वह अभी दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर स्टेशन है. भारत में ज्यादातर एक्सपर्ट ने कहा है कि यह प्रोजेक्ट एक संभावित 'वॉटर बम' हो सकता है क्योंकि यह चीन को भारत में पानी के बहाव में हेरफेर करने की इजाजत देगा.

'भारतीय हितों की रक्षा के लिए सरकार प्रतिबद्ध'

विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह अगस्त में इस परियोजना पर एक बयान जारी कर कहा था कि वे ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित घटनाक्रमों पर लगातार नजर रख रहे हैं. भारत के लिए चिंता सिर्फ पर्यावरण से जुड़ा नहीं है, बल्कि रणनीतिक रूप से भी है. अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने चेतावनी दी थी कि इस परियोजना का इस्तेमाल 'टाइम बम' के रूप में किया जा सकता है, जिसमें चीन ब्रह्मपुत्र में छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा और समय को नियंत्रित कर सकता है. अचानक पानी छोड़ने से बाढ़ आ सकती है, जबकि पानी रोके रखने से महत्वपूर्ण समय में नदी के बड़े हिस्से सूख सकते हैं.

विदेश मंत्रालय ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था, "इस परियोजना को पहली बार 1986 में सार्वजनिक किया गया था और तब से चीन में इसकी तैयारियां चल रही हैं." विदेश मंत्रालय ने कहा कि सरकार इस क्षेत्र में भारतीय हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. बयान में कहा गया है, "सरकार ब्रह्मपुत्र नदी से संबंधित सभी घटनाक्रमों पर सावधानीपूर्वक नजर रखती है, जिसमें चीन की ओर से हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाने की योजना भी शामिल है. भारत सरकार अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाती है."

भारत पर कैसे पड़ सकता है असर?

ब्रह्मपुत्र नदी का अधिकांश पानी भारत के भीतर मानसून की बारिश और उसकी सहायक नदियों से आता है. हालांकि, सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों का दावा है कि नदी के ऊपरी हिस्से में किए गए बदलावों से नदी का इकोसिस्टम बिगड़ सकता है. यहां तक ​​कि मामूली बदलाव भी असम और अरुणाचल प्रदेश के उपजाऊ बाढ़ के मैदानों, मत्स्य पालन को प्रभावित कर सकते हैं, जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील क्षेत्र हैं.

चीन को रोकने के लिए भारत की तैयारी

वाशिंगटन स्थित स्टिमसन सेंटर के डायरेक्टर ब्रायन आइलर ने चीन के इस डैम को अब तक के सबसे एडवांस तकनीक और डिजाइन वाला हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बताया. उन्होंने इसे खतरनाक भी कहा है. चीनी प्रोजेक्ट का मुकाबला करने के लिए भारत भी इस नदी के अपने हिस्से पर एक बांध बनाने की योजना बना रहा है. भारत उसी नदी पर ब्रह्मपुत्र बेसिन में कम से कम 208 हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बनाने की योजना बना रहा है.

सरकारी हाइड्रोपावर कंपनी नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NHPC) उसी नदी पर एक मेगा प्रोजेक्ट यानी 11,200 मेगावाट का बांध बनाने की योजना बना रही है.